माहे मुहर्रम की फ़ज़िलत अज़ क़लम (हाफिज़ फै़ज़अहेमद सिद्दीक़ी




 




माहे मुहर्रम की फ़ज़िलत अज़ क़लम (हाफिज़ फै़ज़अहेमद सिद्दीक़ी इमाम मस्जिद हज़रत खा़की शफा रहमतुल्लाहि अलैह (औसा)          इस्लामी साल का पहेला महीना मुहर्रमुल हराम शुरू हो चुका है दुनिया में कई तरह के कैलेंडर चलते हैं लेकिन उसमें सबसे ज़्यादा मशहूर हिजरी और ईसवी कैलेंडर है तारीख़ लिखने का रिवाज तो पहेले ज़माने से ही था लेकिन साल नहीं लिखा जाता था जब हज़रत उमर रजि यल्लाहू अन्हु के दौरे खि़लाफत में आपको सरकारी दस्तावेज़ में सिर्फ  शाबान लिखा हुआ आपने देखा तो परेशान हुए के यह किस साल का शाबान है आपने फौ़रन सहाबा -ए- इकराम रजि़ यल्लाह हू अन्हुम को जमा फरमा कर मशवरा किया और सब से राय ली उस वक्त हज़रत अली रजि यल्लाह हू अन्हु ने फरमाया कि साल रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हिजरत से शुरू किया जाए आपने उस राय को पसंद फरमाया और हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हिजरत वाले साल से इस्लामी साल लिखना शुरू फरमाया मुहर्रमुल हराम बहोत ही मुक़द्दस महीना है ज़माने जाहिलियत से ही लोग उसका एहतेराम करते थे लोग उस महीने में लड़ाई झगड़ा बंद कर देते थे चार एहतेराम इज्जत वाले महीने  हैं। जि़कादा ज़िलहज मुहर्रम और रजब  हैं जो आज भी अल्लाह पाक ने उसकी हुरमत को बाकी रखा है यूं तो मुहर्रमुल हराम में बहोत से अजी़म वाकि़यात पेश आए लेकिन दो बहोत मशहूर व मारूफ हैं। जिनमें से पहला एक मुहर्रमुल हराम को जलीलुल क़दर सहाबी खलीफा ए दुव्वम हजरत उमर फारूक़ रजि़ यल्लाह हू अन्हु की शहादत का वाकि़या दूसरा हज़रत हुसैन रजि़ यल्लाहु अन्हु की शहादत का वाक़िया इसी माह में 10 मुहर्रम को पेश आया. और इसी माह में यौमेआशूरा है अश्र के माना दस  हैं. और यौमेआशूरा के माना दसवां दिन जो मोहर्रम की 10 तारीख को कहेते हैं। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम जब हिजरत करके मदीना मुनव्वरा तशरीफ लाए तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यहूदियों को देखा के वो आशूरा के रोजे़ का खूब एहतेमाम करते हैं तब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनसे पूछा के तुम लोग उस दिन रोजा़ क्यों रखते हो उन्होंने कहा कि ये बहोत अहेम दिन है इसी दिन अल्लाह ताला ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और और उनकी क़ौम को फिरौन के जु़ल्म से नजात दी थी और फिरौन और उसकी क़ौम को दरिया में डुबो दिया था उसके शुक्रिये में मूसा अलैहिस्सलाम ने रोजा़ रखा था तो हम भी उसी दिन का रोजा रखते हैं आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया के हम तुमसे ज़्यादा हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की इस खुशी में शरीक होने के हक़दार हैं फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वसल्लम ने रोजा रखा और मुसलमानों को भी रोजे़ का हुक्म दिया लेकिन सिर्फ आशु रे का रोजा़ रखने में एक तरह से यहूदियों की मुशाबेहत थी इसलिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया के आइंदा साल मेेेैं आशुरे के साथ एक और रोजा रखुँगा ताके यहुदियों की मुखा़लिफत हो.इसी लिए उलमा ने 9/10 या 10/11 दोनो दिनों का रोज़ा मुस्तहब क़रार दिया.  रमजान के बाद सबसे अफ़ज़ल  रोजा मोहर्रम का रोजा़ है (मुस्लिम शरीफ) हज़रत अब्दुल्लाह रजी़यल्लाहू अन्हु फरमाते हैं के मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जितना रमजा़न के बाद आशूरा के रोजे़ का एहतेमाम फरमाते देखा उतना किसी और फजीलत वाले दिन के रोजे का एहतमाम करते नहीं देखा आशूरा के दिन की एक फजीलत ये भी है कि जो शख्स उस दिन अपने अहेल व अयाल और बाल बच्चों पर खाने-पीने में उसअत देगा यानी खूब दिल खोल कर उनको खिलाएगा पिलाएगा  तो उसकी बरकत से उसके पूरे साल की रोजी में  उसअत (बरकत)होगी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिस शख्स ने आशुरे के दिन अपने अहेल व अयाल पर उस्अत दी अल्लाह ताला उसको पूरे साल उस्अत देंगे. (शोबुल ईमान) हज़रत सुफियान सौरी रहमतुल्लाही अलैह फरमाते हैं कि मैंने इस का तजुरुबा किया तो वाक़ई मेरे रिज़क़ में पुरे साल उस्अत रही ये कितनी बड़ी फजीलत है हम सब को भी इस पर अमल करना चाहिए अल्लाह ताला हम सबको अमल की तौफी़क़ अता फरमाए आमीन.

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