13 नोव्हेंबर यौमे वफात
स्वतंत्रता सेनानी *बी अम्मा- जो स्वतंत्रता सेनानी मौलाना शौकत अली और मौलाना मोहम्मद अली जोहर की माँ थी-*
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📕 जिन्हें गांधी भी माँ कहते थे ।
📘आपको देखने मे ये तस्वीर ज़ईफ बुज़ुर्ग कमज़ोर ख़ातून की दिख रही होगी लेकिन *इस बूढ़ी ज़ईफ कमज़ोर औरत ने 1917 मे फिरंगीयो की मज़बूत हुकूमत को हिला कर रख दिया था* ।
📙 ये बूढ़ी मोहतरमा *तहरीके ख़िलाफत की रूहे रवां मौलाना मोहम्मद अली जोहर और मौलाना शौकत अली की वालदा थी* ।
📗इनके जज़बे का ये आलम था कि *फिरंगी सरकार ने तहरीके ख़िलाफत का ज़ोर तोड़ने के लिए इनके दोनो बेटो को जेल मे डाल दिया तो ये उठ खड़ी हुई और ललकार कर कहने लगी । "बेटा फिक्र ना करो ख़िलाफत के लिए जान दे दो"* ।
तब ये तहरीके ख़िलाफत का नारा बन गया आबादी बानो बेगम अल-मआरूफ बी अम्मा
जेल मे क़ैद अपने बेटो को शहादत का दर्स दे कर घर से निकल खड़ी हुई और हिंदुस्तान मे तहरीके ख़िलाफत को मज़बूत और मुनज़्ज़म करा ।
*महान महिला स्वातंत्रता सेनानी आबदी बानो बेगम 'बी अम्मा' क्या थीं ? इसकी मिसाल इसी बात से मिल जाती है कि जब बी अम्मा को यह गुमान हो गया कि उनके बेटे (मोहम्मद अली व शौकत अली) ब्रिटिश साम्राज की गर्म सलाख़ों की तपिश बर्दाश्त नहीं कर सके और माफ़ी मांगकर बाहर आज़ादी की फ़जा में आना चाहते हैं; एैसे में एक मां को बेटों की आमद का इंतज़ार होना चाहिए था, लेकिन वह मां थी जिसने कहा था कि अगर मेरे बेटों ने फ़िरंगियों से माफ़ी मांग ली है और रिहा हो रहे हेै तो मेरे हाथों को अल्लाह इतनी क़ुवत दे कि मैं अपने हाथों से उनके गले दबा कर उन्हें हलाक कर दूं*। एैसी माओं की मिसाल नहीं मिलती है, बी अम्मां ख़ुद एक मिसाल हैं।
13 नवम्बर 1924 को 'बी अम्मा' का इंतकाल हो गया था। *अपनी ज़िन्दगी में उन्होने अपने बेटों को ख़िलाफ़त तहरीक को जिंदा रखने और ब्रिटिश साम्राज के ख़िलाफ़ जद्दोजेहद रखने की तलकीन की थी*। शफ़ीक़ रामपुरी ने उनके जज़्बे को अपने कलाम में कुछ इस तरह पिरोया है।
बोलीं अमाँ 'मोहम्मद-अली' की
जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो
साथ तेरे हैं 'शौकत-अली' भी
जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो
गर ज़रा सुस्त देखूँगी तुम को
दूध हरगिज़ न बख़्शूँगी तुम को
मैं दिलावर न समझूँगी तुम को
जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो
ग़ैब से मेरी इमदाद होगी
अब हुकूमत ये बर्बाद होगी
हश्र तक अब न आबाद होगी
जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो
खाँसी आए अगर तुम को जानी
माँगना मत हुकूमत से पानी
बूढ़ी अमाँ का कुछ ग़म न करना
कलमा पढ़ पढ़ ख़िलाफ़त पे मरना
पूरे उस इम्तिहाँ में उतरना
जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो
होते मेरे अगर सात बेटे
करती सब को ख़िलाफ़त पे सदक़े
हैं यही दीन-ए-अहमद के रस्ते
जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो
हश्र में हश्र बरपा करूँगी
पेश-ए-हक़ तुम को ले के चलूँगी
इस हुकूमत पे दावा करूँगी
जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो
चैन हम ने 'शफ़ीक़' अब न पाया
जान बेटा ख़िलाफ़त पे दे दो
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Source- Heritagetimes
-Md Umar Ashraf
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संकलन *अताउल्लाखा रफिक खा पठाण सर*
सेवानिवृत्त शिक्षक
*टूनकी तालुका संग्रामपूर*
*बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726
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