14 डिसेंम्बर यौमे वफात(पुण्यतिथी) क्रांतिकारी फजल वहिद उर्फ हाजी साहब तुरंगजई (र.अ.)

 14 डिसेंम्बर यौमे वफात(पुण्यतिथी)

क्रांतिकारी फजल वहिद उर्फ हाजी साहब तुरंगजई (र.अ.) 

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क्रांतिकारी हाजी साहब तुरंगजई (र.अ.)का जन्म 1858 में भारत के उत्तर-पश्चिम सीमांत क्षेत्र में चारसद्दा तहसील के तुरंगजई गांव में  हुआ था, जिन्होंने अंग्रेजों को उनके क्षेत्रों से बाहर निकालने के लिए सशस्त्र युद्ध छेड़ा और अंग्रेजी सैन्य अधिकारियों की रातों की नींद हराम कर दी। उनके माता-पिता ने उन्हें फजल वाहिद नाम दिया था और वे इतिहास में 'हाजी साहब तुरंगजई' (र.अ.)के नाम से प्रसिद्ध हुए क्योंकि लोग उन्हें प्यार से इन्हे इसी नाम से बुलाते थे। उन्होंने अपनी पारंपरिक शिक्षा अपने पिता फैज अहमद से प्राप्त की और उच्च शिक्षा दारुल उलूम, देवबंद में प्राप्त की। वे उस विचारधारा के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी शेखुल हिंद मौलाना महमूदुल हसन (र.अ.) की ब्रिटिश विरोधी विचारधारा से प्रभावित थे। 1887 में उन्होंने उत्तर-पश्चिम सीमा के पठान जनजातियों द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में भाग लिया। उन्होंने खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें सीमांत गांधी के नाम से जाना जाता था, के साथ तलहटी में कई गांवों का दौरा किया, जिन्होंने पठान जनजातियों के बीच सुधार, एकता और शिक्षा के लक्ष्यों के लिए काम किया। 
आपने सन् 1894 में हज़रत नानोतवी (र.अ.), हज़रत गंगोही (र.अ.),और हज़रत शेखुल हिन्द   (र.अ.),वगैरह के साथ हज किया। जिस मौके पर आपने हज़त हाजी इमदादुल्ला महाज़रे मक्की (र.अ.) के हाथ पर  बयत जिहाद की।(अंगरेज के साथ युद्ध की शपथ ली)। सन् 1908 में आपने दोबारा हज किया। आप हज़रत शेख-उल-हिन्द (र.अ.)की तहरीके इन्कलाब से पूरी तरह जुड़े हुए थे और उस तहरीक के कायद भी रहे।  आपने अपने साथियों और मुरशद साहब की क्यादत में मालाकुन्द, बतखेला और चकदर में कई महाजों पर अंग्रेज़ी फौज से टक्कर ली और जंगे-अजीम के एलान के बाद आज़ाद कबाइल में पहुंचकर अंग्रेज़ी फौज की छावनी पर छापे मारे और तमाम फौजियों का सफाया कर दिया।
आपकी कोशिश से पचास से भी ज़्यादा आज़ाद कौमी मदरसे कायम हुए, जिन्होंने पूरे सूबे में अंग्रेज़ों के खिलाफ ज़ेहनी बेदारी पैदा की और वतन के लिए क्रांतिकारी तैयार किये।
 उनके प्रयासों से भयभीत होकर अंग्रेजी अधिकारियों ने उन पर समानांतर सरकार चलाने का आरोप लगाया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया, लेकिन अपराध सिद्ध किये बिना ही उन्हें रिहा कर दिया गया। 1915 के आसपास सरकार ने शेखुल हिंद मौलाना महमुदुल हसन (र.अ.) की गिरफ्तारी का वारंट जारी किया जब वह मौलाना महमूदुल हसन (र.अ.) के मार्गदर्शन में ब्रिटिश शासकों से मातृभूमि की मुक्ति के लिए लडाई लढ रहे थे। गुलामी बर्दाश्त न करने वाले पठान लोगों ने दूसरे क्षेत्रों से आने वाले लड़ाकों के साथ  संघर्ष की तैयारी तेज कर दी। उन्होंने और उनके अनुयायियों ने ब्रिटिश सैन्य ठिकानों पर हमला किया और ब्रिटिश सरकार के लिए चुनौती बन गये। 1923 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें रोकने के लिए पहाड़ियों पर अतिरिक्त सेनाएँ भेजीं। जब अधिकारी उनकी गिरफ्तारी की तैयारी कर रहे थे, तो वह अंग्रेजी जासूसों की आंखों में धूल झोंककर अपने अनुयायियों के साथ पहाड़ों में लुप्त हो गए। 1930 तक उन्होंने अपने अनुयायियों को ब्रिटिश अधिकारियों से सुरक्षित रखा। 1932 में ब्रिटिश अधिकारियों ने उनके आवास पर बमबारी की। 1936 में बीमार पड़ने वाले हाजी साहब तुरंगजई (र.अ.) की 14 दिसंबर 1937 को मृत्यु हो गई।
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संदर्भ -1)THE IMMORTALS 2
  - sayed naseer ahamed (9440241727)
2)लहू बोलता भी है
- सय्यद शाहनवाज अहमद कादरी,कृष्ण कल्की
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संकलन तथा अनुवादक लेखक -  *अताउल्लाखा रफिक खा पठाण सर* 
सेवानिवृत्त शिक्षक
टूनकी बुलढाणा महाराष्ट्र*
9423338726

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