ईद_उल_अज़्हा_विशेष* *दुनिया की मानवाधिकार की पहली सनद* *मैदाने आराफ़ात और ख़ुत्बा-ए-हज्जतुल विदा*

 *ईद_उल_अज़्हा_विशेष*


*दुनिया की मानवाधिकार की पहली सनद*


*मैदाने आराफ़ात और ख़ुत्बा-ए-हज्जतुल विदा*


       ✒️ एम आय शेख, लातूर 

          

  




▪️आप सल्ल.ने अपनी जिंदगी के पहले और आख़री हज के दौरान इसी अराफात के मैदान में 9 मार्च 632 इस्वी को ये ख़ुत्बा दिया. जो आगे चल कर मानव-इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ.


▪️उस वक्त इस्लाम के लगभग सवा लाख सहाबा रोज़ी मौजूद थे. थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ऐसे लोगों को खडा कर दिया गया था जो आपके जुमलों को सुनकर ऊँची आवाज़ में ज्युं का त्युं दोहरा देते. इस तरह सभीने आपका पूरा ख़ुत्बा सुना.


▪️आपने पहले बिस्मिल्लाह पढा, शैतान के शर से अल्लाह की पनाह तलब की, कलमा-ए-तौहीद पढ़ा और  फ़रमाया :


● ऐ लोगो! अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं है, वो एक है, कोई उसका साझी नहीं. अल्लाह ने अपना वादा पूरा किया, उसने अपने बन्दे (रसूल) की मदद की और अकेले ही बेदीन ताकतों को शिकस्त दी.


● लोगो मेरी बात सुनो..! मैं नहीं समझता कि अब कभी हम इस तरह एकसाथ हो सकेंगे और शायद के इस के बाद मैं हज न कर सकूं.


● लोगो...! अल्लाह फ़रमाता है कि, "इन्सानो...! हम ने तुम सब को एक ही मर्द और औरत से पैदा किया है और तुम्हें गिरोहों और क़बीलों में बाँट दिया है ता कि तुम पहचाने जा सको. अल्लाह की नज़र में तुम में सबसे अच्छा और इज़्तवाला  वो  है जो अल्लाह से ज़्यादा डरने वाला है. किसी अरबी को किसी अजमी (ग़ैर-अरबी) पर, किसी ग़ैर-अरबी को किसी अरबी पर कोई बढतरी हासिल नहीं है. न काला गोरे से बेहतर है न गोरा काले से. हाँ इज़्जत  और रुतबे का कोई पैमाना है तो वो तक्वा (ईशपरायणता) है."


● "सारे इंसान आदम की औलाद हैं और आदम मिट्टी से बनाए गए थे. अब इज़्जत वक़ार के सारे दावे, ख़ून और माल की सारी मांगें और दुश्मनी के सारे बदले, जहिलात (अज्ञानता) की सारी रस्में मेरे पाँव तले रौंदे जा चुके हैं. बस, काबा का इंतजाम और हाजियों को पानी पिलाने के खिदमत का काम पहले ही की तरह जारी रहेगा. ऐ कु़रैश के लोगो...! ऐसा न हो कि अल्लाह के सामने तुम इस तरह आओ कि तुम्हारी गरदनों पर तो दुनिया का बोझ हो और दूसरे लोग आख़िरत का सामन लेकर आएँ, और अगर ऐसा हुआ तो मैं अल्लाह के सामने तुम्हारे कुछ काम न आ सकूंगा."


● "ऐ कु़रैश के लोगो...! अल्लाह ने तुम्हारे झूठे घमंड को ख़त्म कर डाला और अब तुम्हें अपने बाप-दादा के कारनामों पर  फ़क्र करने की कोई गुंजाइश नहीं. लोगो...! तुम्हारे ख़ून, माल और इज़्ज़त एक-दूसरे पर हराम कर दी गईं हमेशा के लिए. इन चीज़ों की अहमियत ऐसा ही है जैसी आज के इस दिन की और इस मुबारक महीने की. ख़ासकर इस शहर में तुम सब अल्लाह के सामने जाओगे और वो तुम से तुम्हारे कार्मों के बारे में पूछेगा."


● "देखो...! कहीं मेरे बाद भटक न जाना कि आपस में एक-दूसरे का ख़ून बहाने लगो. अगर किसी के पास अमानत रखी जाए तो वो इस बात का पाबन्द है कि अमानत रखवाने वाले को अमानत पहुँचा दे. लोगो...! हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है और सारे मुसलमान आपस में भाई-भाई हैं. अपने गु़लामों का ख़्याल रखो, हां गु़लामों का ख़्याल रखो. इन्हें वही खिलाओ जो ख़ुद खाते हो, वैसा ही पहनाओ जैसा तुम पहनते हो."


● "जाहिलियत (अज्ञान) का सब कुछ मैंने अपने पैरों से कुचल दिया है. उस वक्त  के ख़ून के सारे बदले ख़त्म कर दिये गए. पहला बदला जिसे मैं माफ़ करता हूं मेरे अपने खानदान का है. रबीअ़-बिन-हारिस के दूध-पीते बेटे का ख़ून जिसे बनू-हज़ील ने मार डाला था, आज उसे मैं माफ़ करता हूं. जाहिलियत के ब्याज (सूद) अब कोई अहमियत नहीं रखते, पहला सूद, जिसे मैं हटाता (निरस्त कराता) हूं, अब्बास-बिन-अब्दुल मुत्तलिब के परिवार का सूद है."


● "लोगो...! अल्लाह ने हर हक़दार को उसका हक़ दे दिया, अब कोई किसी वारिस के हक़ में वसीयत न करे."*


● "बच्चा उसी के तरफ़ मन्सूब किया जाएगा जिसके बिस्तर पर पैदा हुआ. जिस पर हरामकारी साबित हो उसकी सज़ा पत्थर है, सारे अच्छे बूरे कामों का हिसाब-किताब अल्लाह के यहाँ होगा."


● "जो कोई अपना नसब (वंश) तब्दील करे या कोई गु़लाम अपने मालिक के बदले किसी और को मालिक ज़ाहिर करे तो उस पर ख़ुदा की फिटकार."


●"क़र्ज़ अदा कर दिया जाए, माँगी हुई चीज वापस करनी चाहिए, इनाम का बदला देना चाहिए और जो कोई किसी की ज़मानत ले और वो उसे पूरा न कर सके तो तावान अदा करे. अब किसी के लिए ये जायज़ नहीं कि वो अपने भाई से कुछ ले, सिवा उसके जिस पर उस का भाई राज़ी हो और ख़ुशी-ख़ुशी दे. ख़ुद पर और दूसरों पर ज़ुल्म न करो."


● "औरत के लिए ये जायज़ नहीं कि वो अपने शौहर का माल उसकी इजाजत के बिना किसी को दे."


● "देखो...! तुम्हारे ऊपर तुम्हारी बिवीयों के कुछ हक़ हैं. इसी तरह, उन पर भी तुम्हारे कुछ हैं. औरतों पर तुम्हारा ये हक है कि वे अपने पास किसी ऐसे मर्द को न बुलाएँ, जिसे तुम पसन्द नहीं करते और कोई ख़यानत (विश्वासघात) न करें, और अगर वह ऐसा करें तो अल्लाह की ओर से तुम्हें इसकी इजाज़त है कि उन्हें हल्की मार मारो. और वो बाज़ आ जाएँ तो उन्हें अच्छी तरह खिलाओ, पहनाओ."


● "औरतों से अच्छा बर्ताव करो क्योंकि वह तुम्हारी पाबन्द हैं और वो ख़ुद अपने लिए कुछ नहीं कर सकतीं. इसी लिए इनके बारे में अल्लाह से डरो कि तुम ने इन्हें अल्लाह के नाम पर हासिल किया है और उसी के नाम पर वो तुम्हारे लिए हलाल हुईं. लोगो...! मेरी बात अच्छी तरह समझ लो के मैंने तुम्हें अल्लाह का पैगाम पहुंचा दिया है."


● "मैं तुम्हारे बीच एक ऐसी चीज़ छोड़ जाता हूं कि तुम कभी नहीं भटकोगे, अगर उस पर क़ायम रहे, और वो अल्लाह की किताब (क़ुरआन) है और हाँ देखो, दीन के मामलात में हद से आगे न बढ़ना कि तुम से पहले के लोग इसी वजह से हलाक कर दिए गए."


●"शैतान को अब इस बात की कोई उम्मीद नहीं रह गई है कि अब उसकी इस शहर में इबादत की जाएगी मगर ये मुमकिन है कि ऐसे मामलात में जिन्हें तुम कम अहमियत देते हो, उसकी बात मान ली जाए और वो इस पर राज़ी है, इसलिए तुम उससे अपने दीन और विश्वास ईमानकी रहिफ़ाज़त करना.


● "लोगो...! अपने रब की इबादत करो, पाँच वक़्त की नमाज़ अदा करो, पूरे महीने के रोज़े रखो, अपने माल की ज़कात ख़ुशदिली के साथ देते रहो, अल्लाह के घर (काबा) का हज करो और अपने सरदार के हुक्म की पैरवी करो तो अपने जन्नत में दाख़िल हो जाओगे."


●"अब गुनहगार ख़ुद अपने गुनाह का ज़िम्मेदार होगा और अब न बाप के बदले बेटा पकड़ा जाएगा न बेटे का बदला बाप से लिया जाएगा.


●"सुनो...! जो लोग यहाँ मौजूद हैं, उन्हें चाहिए कि ये पैग़ाम और ये बातें उन लोगों को बताएँ जो यहाँ नहीं हैं, हो सकता है, कि कोई गैरहाजिर आदम तुम से ज़्यादा इन बातों को समझने और महफूज़ रखने वाला हो और लोगो...! तुम से मेरे बारे में अल्लाह के यहाँ पूछा जाएगा. तो बताओ तुम क्या जवाब दोगे? लोगों ने जवाब दिया कि हम इस बात की गवाही देंगे कि आप (सल्ल.) ने अमानत (दीन का पैगाम) पहुँचा दिया और रिसालत (ईशदूतत्व) का हक़ अदा कर दिया, और हमें सच और भलाई का रास्ता दिखा दिया.


▪️ये सुनकर मुहम्मद (सल्ल॰) ने अपनी शहादत की उँगुली आसमान की ओर उठाई और लोगों की ओर इशारा करते हुए तीन बार फ़रमाया, "ऐ अल्लाह...! गवाह रहना! ऐ अल्लाह, गवाह रहना! ऐ अल्लाह...! गवाह रहना...!"


इस ख़ुत्बे को बार बार पढिये और इसके तमाम नुकात ज़हननशीन कर लिजिए ता के जब भी ह्युमन राइट (मानवाधिकार) की बात हो तो आप अपनी बात पूरे एतमाद के साथ रख सकें. इसे सेव्ह किजिए और जितना मुमकिन हो उतना शेयर किजीए.

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