कासिद के ५१ वीं सालगिराह के खुसूसी शुमारे का शानदार इजरा

 कासिद के ५१ वीं सालगिराह के खुसूसी शुमारे का शानदार इजरा







सोलापूर - सोलापूर शहर का पहला हिंदी हफ्त रोजा " कासिद" जो पिछले ५० सालों से पाबंदी के साथ शाया हो कर कौम व मिल्लत की समाजी , तालीमी , दीनी रहनुमाई करता आया है .  

 अब ५१ वें साल मे कदम रखा है

कासिद की ५१ वीं सालगिराह पर

खुसूसी शुमारे का इजरा जिल्हा माहिती अधिकारी के ऑफीस मे माहिती अधिकारी मा सुनिल सोनटक्के के हाथों अमल मे आयी सबसे पहले कासिद के संपादक अय्यूब नल्लामंदू

ने हाजरीन का "शम ए कासिद " किताब और बुके देकर इस्तकबाल करते किया

और ५० साला रुदाद पेश करते हुवे कासिद के बानी मुदीर मरहूम अब्दूल लतीफ नल्लामंदू के खिदमात का जायजा लिया . और उन की ५० साला सहाफती दौर के यादगार लम्हो को पेश किया .

इस के बाद सोलापूर जिल्हा मराठी पत्रकार सघ के सेक्रेटरी प्रा पी पी कुलकर्णी ने जिल्हा माहिती अधिकारी सुनिल सोनटक्के और कासिद के संपादक अय्यूब नल्लामंदू की खिदमत मे शाल बुके देकर "कसिद " अखबार को आज की सख्त जरूरत बताया

तरुण भारत के बुज़ुर्ग सहाफी दशरथ वडतिले ने भी बानी मुदीर मरहूम अब्दूल लतीफ के ताअलूक से पुरानी यादों को ताजा किया और हिंदू - मुस्लीम इत्तेहाद को बढावा देने वाली अजीम शखसीयत करार दिया

जनशकती न्यूज चैनल के इलियास सिद्दीकी ने कहा - कासिद की बुनियाद आज से ५० साल पहले अलहाज अब्दूल लतीफ सर ने डाली थी उसे अपनी आखरी सांस तक चलया मगर आज उनके फर्जंद अय्यूब नल्लामंदू साहब इस को डिजीटल मिडीया के दौर मे " नो - फ्रॉफीट , नो लॉस " के तहत चला रहें है ये समाजी व दीनी खिदमत को लोक हमेशा याद रखेंगे .

जिल्हा माहिती अधिकारी  सुनिल सोनटकके  ने कहा - ५० बरस तक एक विकली पेपर  चालू रहना अपने आप मे एक मिसाल है , इस कासिद अखबार ही नही है बल्के समाजी , सियासी , तालीमी खिदमात अंजाम देने वाला एक मर्कज है ५१ वें सालगिराह पर मैं संपादक अय्यूब भाई को और कासिद की टीम को मुबारकबाद देता हूँ .

इस मौके पर दै एकमत के रणजित जोशी , दै तरुण भारत के बुजूर्ग सहाफी दशरथ वडतिले , दै जनमत के नरुटे भाऊ , प्रेस फोटोग्राफर नागेश दंतकाळे , दै नालंदा एक्सप्रेस के शिंदे , दै दणका टाईम्स के विश्वनाथ व्हन कोरे , विजय कुमार जुंजा , श्रीशैल चिंचोळकर , बाळा साहेब वाघमोडे , राजकुमार पवार , महादेव जंबगी , अशोक ढोने  दिलीप शिंदे मौजूद थे

 नजामत  कुलकर्णी सर ने की और  मजहर अल्लोळी ने शुक्रीया अदा किया .

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