लॉक डॉन और बकरीद.(अज़ क़लम हाफीज़ फैज़ अहेमद सिद्दीकी.इमाम मस्जिदे शफा.औसा) इस वक्त पूरी दुनिया में बेचैनी का आलम है हर शख़्स जन्नत जहन्नम आखि़रतका और मरने के बाद के हालात और और दुनियाई मसाइल को भूलकर हर आम व खास के ज़हेन में बस कोरोना का डर खौफ छाया हुआ है आप इसे चाहे यहूदियों की साजि़श कहें या और कोई नाम दें बहरे हाल है तो अल्लाह का अज़ाब ही देखते ही देखते 4 महीने गु़जर चुके और इन्हीं दिनों में आय्यामे अशरए जि़ल्हज और बकरईद आगई. शायद तारीख में पहली मर्तबा ही ऐसा हो रहा है कि जहां 80 लाख हाजियों की तादाद होती थी इस साल सिर्फ 10 हज़ार की तादाद को इज़ाज़त मिली है अशरए ज़िलहज के इन 10 दिनों के बारे में अल्लाह ताला ने क़ुरआने करीम में क़सम खाकर उस की फजीलत बताई और हदीस पाक में आता है के इन 10 दिनों से बढ कर अल्लाह ताला को कोई दिन महेबुब नहीं सबसे ज्यादा महबूब अमल ईन दस दिनों में किया हुवा अमल है. लिहाजा तुम इन दिनों में कसरत से तकबीर तहलील और तहमीद कहा करो और कुर्बानी के 3 दिनों में अल्लाह पाक को कुर्बानी से बढ़कर कोई अमल महबूब नहीं है अब सवाल यह है क्या इस लॉक डॉन में भी क़ुर्बानी करनी चाहिए कोई कहता है हालात ठीक नहीं है आइंदा साल देखेंगे कारोबार बंद हैं वगै़रा-वगै़रा .क्या कहते हैं उलमा ए इकराम के जो शख़्स साहिबे निसाब हो यानी जिसके पास साडे 52 तोला चांदी या उसकी क़ीमत हो जो तक़रीबन ₹35000 रुपए बनते हैं और कोई क़रज़ न हो उस पर तो कु़र्बानी वाजिब है। आइए अब हम अपने आप का जायजा़ लेते हैं अपने ज़मीर से पुछते हैं के इन बातों में कितनी सच्चाई है...इस लॉक डॉन में मुश्किल हालात में जहां लोग ट्रेनों बसों में रास्तों में फंसे हुए थे हम अपने घरों में चैन की सांस ले रहे थे जहां लोग एक या दो वक्त के खाने पीने को तरस रहे थे हमने वहां तीन वक्त मालिक के फज़ल से पेट भर खाना खाया हमने बच्चों की ख़ाहिशों के लिए अच्छी-अच्छी ग़िज़ाओं का इंतेज़ाम किया और वक्त गुजा़री के लिए कहीं स्मार्टफोन तो कहीं टैब तो कहीं लैपटॉप की खरीदी हो रही इस लॉक डॉन में भी कहीं बच्चियों की बच्चों की शादियां हो रही है पैसा खर्च किया जा रहा है अपनी ख्वाहिशों और जरूरतों के लिए हम हर तरह के खर्च कर रहे हैं लेकिन जब बात कुर्बानी की आती है तो हम बड़ी आसानी से कह देते हैं कि इस साल गुंजाइश नहीं है हम यह समझ रहे हैं कि हम जब बहोत कमाने लगें कारोबार अच्छी तरह चलने लगे कमाइ खुब लगेऔर सब जरूरतें पूरी हो कर कुछ बज जाए तो तब देखेंगे। ऐसा हरगिज़ नहीं है इंसाफ से काम लीजिए और कु़र्बानी अदा कीजिए और कुरबानी का करना वाजिब है और गुंजाइश होने के बावजूद कुर्बानी ना करना ऐसे लोगों के बारे में हदीस में सख्त वईद आई है हमारे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया के जो कुर्बानी करने की ताक़त रखता हो और उसके बावजूद कुर्बानी ना करें वो हमारी ईदगाह के क़रीब भी न आए. अल्लाह पाक हम सबको अपनी इसतेताअत के मुताबिक कुर्बानी करने की तौफीक अता फरमाए. आमीन
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