लातूर रिपोर्टर 4 अप्रैल 2021


*पद की प्रतिष्ठा और मर्यादा....भारतीय समाज की परम्परा....*
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*_म.मुस्लिम कबीर औसा-9175978903_*
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          सारा देश कोविड महामारी से झुंज रहा है.शासन,प्रशासन,आरोग्य,पुलिस,महसूल,शिक्षण और अन्य कई विभाग अपने अपने कार्य क्षेत्र में जिम्मेदारी से कार्यरत हैं.आरोग्य विभाग के अधिकारी,कर्मचारी तो अपनी जान जोखिम में डाल कर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं ये बात निर्विवाद है.यदि ऐसे माहौल में  समाज,परिवार के लोग जब अपनों से दूरी बनाए रखने को प्राथमिकता दी जा रही है.और वहीं कर्तव्य  पालन के रूप में आरोग्य अधिकारी और कर्मचारी सीधे कोविड़ मरीज़ के स्वास्थ्य के लिए अपनी जान की परवाह नहीं कर रहे हैं.तो ऐसे कोवीड योद्धा का सम्मान करने के बजाए उन पर आधिकारिक रुआब जमाने के खातिर अनाप शनाप बक कर उन के कार्य को "फालतू, बोंबलने" जैसे गैरसविंधानिक शब्द का प्रयोग कर के अपमानित करने वाले बड़े अधिकारी के संबंध में समाज धारणा क्या बनेगी?
ऐसा ही कुछ हुआ औसा तहसील के आरोग्य अधिकारी डॉ.आर.आर शेख के साथ....
लातूर जिले के अतिरिक्त जिल्हाधिकरी लोखंडे अपने पद प्रतिष्ठा के विपरित हो कर औसा की तहसीलदार के फोन से कर्तव्य पालन पर उपस्थित डॉ.आर.आर शेख से संपर्क किया और कुछ हाल अहवाल पूछे बिना सीधे अनाप शनाप बकते हुए "कूठे बोंबलत फिरतोस रे? कसला फालतू आहेस रेे तू?" कहे कर अपनी और सामने वाले की पद की गरिमा के चीथड़े उड़ा दिए.
वास्तविक तो ये है कि डॉ.आर.आर शेख जैसे कर्तव्यदक्ष आरोग्य अधिकारी ने औसा में कोवीड़ केंद्र और तहसील क्षेत्र में अपनी टीम के साथ मिल कर जो कार्य किया उस कार्य की प्रशंसा जिलास्तर पर हुई और हो रही है.डॉ.आर.आर शेख ने कोवि़ड महामारी के काल में कर्तव्य पालन के लिए अपना घर ही  कोवीड़ केंद्र ,याकतपुर रोड औसा के लगत में बनाया ताके मरीजों की देख भाल में कोताही न हो.परिवार जनों और दोस्तो की बात की अनसुनी की और अविरत आरोग्य सेवा में जुटे रहे.और आज भी कर रहे हैं.उन के इस टीम वर्क का सभी सामाजिक, राजनीतिक, और प्रशासनिक स्तर से सम्मान किया जा रहा है. परसों उनके सेवाकाल के 25 वर्ष पूर्ण होने के उपरांत प्रसिद्ध हिंदी साप्ताहिक " लातूर रिपोर्टर" ने एक विशेषांक निकाल कर उनके कार्यों का लेखा जोखा पेश किया.यदि ऐसे सर्वमान्य अधिकारी के साथ जिलास्तर के वरिष्ठ अधिकारी केवल रुआब जताने के लिए किसी महिला अधिकारी के समक्ष अव्हेलना करते हैं तो निंदनीय,अशोभनीय और किसी भी सभ्य समाज,प्रशासन के हित में नहीं है.इस प्रकार से उन्हें तो कोई वाहवाही नहीं करेगा बल्कि जमीनी स्तर पर कार्य करने वालों में वाताहट आवश्य आएगी जो हम सब के लिए नुकसानदेह होगी.लातूर जिला के वरिष्ठ अधिकारियों ,राजनीतिज्ञों ,विचार धाराओं को सभ्य परम्पराओं को छेद्ने वाली बात है.लातूर जिले में एस. एस हुसैन साहब से के कर जी.श्रीकांत जी,और अब प्रथ्विराज बी. पी जी तक के सभी जिलाधीश आम आदमी से भी आदर्युक्त भाषा का प्रयोग करते देखा, अतिरिक्त जिलाधिकारी के रूप में डॉ.अनंत गव्हानेजी का कार्य भी सराहनीय रहा. उनके पास आने वाले नागरिकों का सम्मान करते हुए देखा गया. परंतु मौजूदा अतिरिक्त जिलाधिकारी लोखंडे जी का उग्र रूप और भाषा किसी भी स्तर पर मान्यता के काबिल नहीं है.सुना जा रहा है कि उनके अपने स्टाफ के साथ भी महोदय हमेशा इसी तरह का रवय्या अपनाए हुए हैं.
     भारतीय समाज की सभ्यता,मान्यता और परम्परा  जात,धर्मों से परे  उठकर खेत खलिहानों में काम करने वाले, मजदूरी करने वाले,और आम चलत फिरत अशिक्षित  व्यक्ति को भी "मामा,काका,मावशी,काकु" कहे कर सम्मान से बात करते हैं.तो हमारे इन बड़े अधिकारी को किस समाज ने अनाप शनाप सिखाया? 
      अब मेरे सामने दो उदाहरण हैं पहला ये की हमारे पूर्व जिलाधिकारी जी श्रीकांतजी जब अकोला के  जिलाधिकारी थे उस समय उन का ड्राइवर सेवा निवृत्त हो गया तो सेवा के अंतिम दिवस जी श्रीकांतजी ने अपनी कार की ड्राइविंग करते हुए अपने ड्राइवर को उस के घर से बड़े सम्मान के साथ लाया और ले जा कर छोड़ा और आशीर्वाद लिया.
     दूसरी घटना भी जी श्रीकांत जी के नाम ही जाती है कि लातूर के अतिरिक्त  जिलाधिकारी डॉ.अनंत गव्हानेजी की बदली औरंगाबाद हुई तो उन्होंने इस समय अपना पद और प्रतिष्ठा के अनुरूप सदाचारी वृत्ति को वरीयता देते हुए खुद कार चला कर डॉ.अनंत गव्हाने जी को घर पहुंचा दिया.ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे.जो पद की गरिमा को प्रतिष्ठा दिलाते हैं.
          कहेने का मतलब है कि व्यक्ति पद और प्रतिष्ठा के अनुरूप हो कर  कार्य करे तो उस पद को प्रतिष्ठा हासिल होगी.
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Coming soon 




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