मौलाना वहीद-उद-दीन खान पर एक नजर *

 मौलाना वहीद-उद-दीन खान पर एक नजर *





"""""""""""""""""""""""""""'""""""""""""""""""""""""

म. मुस्लिम कबीर, लातूर

"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""'"""""""""""

 मौलाना वहीदुद्दीन खान, इस्लामिक स्कॉलर, का जन्म 1 जनवरी, 1925 को भारत के उत्तर प्रदेश के बड़हरिया आज़मगढ़ में हुआ था।  मदरसा अल-इस्लाह आज़मगढ़ के एक स्नातक, एक धार्मिक विद्वान, लेखक, लेखक और विचारक, जो इस्लामिक सेंटर नई दिल्ली के अध्यक्ष  रहे हैं,  इस्लामिक विचार धारा पर आधारित मासिक "अल-रिसाला" के संपादक और जमीयत साप्ताहिक (दिल्ली) के संपादक भी रहे हैं।  धर्म या नस्ल की परवाह किए बिना आपके लेखन का अध्ययन किया जाता है।  खान साहब पांच भाषाओं (उर्दू, हिंदी, अरबी, फारसी और अंग्रेजी) को जानते थे। वे इन भाषाओं में विपुल लेखन किया और सेंकड़ों पुस्तकों का संपादन किया  और भाषण  व संभाषण भी  महारत से करते थे। उनके कार्यक्रम टीवी चैनलों पर प्रसारित किए जाते थे।  मौलाना वहीदुद्दीन खान को आमतौर पर बुद्धिजीवियों में शांतिवादी माना जाता था।  उनका मिशन मुसलमानों और अन्य धर्मों के लोगों के बीच सामंजस्य बनाना है।  इस्लाम के बारे में गैर-मुसलमानों के बीच गलत धारणाओं को दूर करने के लिए।  मुसलमानों के बीच, आमंत्रित राष्ट्र (गैर-मुस्लिम) के उत्पीड़न के लिए धैर्य और प्रतिशोध की शिक्षा को सामान्यीकृत किया जाना चाहिए, जो कि उनकी राय में दवाह के लिए आवश्यक है।  उन्होंने अनगिनत पुस्तकें लिखकर अपना कीर्तिमान स्थापित किया।

मरहूम वहीदुद्दीन खान साहब को उनके कार्य के प्रति देश का तीसरा सर्वोच्च पुरस्कार पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया था.इसी तरह देश विदेश के कई पुरस्कार उनके खाते में जमा हैं.

  मरहूम खान साहब 96 साल के थे.कोरोना पॉजिटिव के कारण उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में पिछले सप्ताह शरीक किया गया था. लेकिन वह बीमारी से उबर नहीं पाए। आखिरकार कहां साहब ने इस नश्वर दुनिया को त्याग कर अल्लाह से जा मिले.

टिप्पणी पोस्ट करा

0 टिप्पण्या