दुश्मनो को भी मेरी खौम दुआ देती है

 जख्म को सब्र के मरहम से 

 छुपा देती है ,

दुश्मनो को भी मेरी खौम 

  दुआ देती है ,

हक कि आवाज को तू महेल

   कि बांदी न समझ ,

जब ये उठती है तो बुनीयाद

    हिला देती है ✍️


मुख्तार कुरेशी, औसा




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