स्वतंत्रता सेनानी शकूर अहमद साहेब- हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के क़द्दावर नेता, भारत छोड़ो आंदोलन के नायक

 #आजादी_का_अमृत_महोत्सव 

स्वतंत्रता सेनानी➡️2️⃣8️⃣2️⃣


9 जानेवारी- यौमे पैदायिश

स्वतंत्रता सेनानी शकूर अहमद  साहेब- हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के क़द्दावर नेता, भारत छोड़ो आंदोलन के नायक




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9 जनवरी 1924 को मधुबनी मे एक महज़्ज़ब ख़ानदान में पैदा हुए शकूर अहमद  साहेब हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के क़द्दावर नेता, भारत छोड़ो आंदोलन के नायक और बिहार विधानसभा के पूर्व उपसभापति थे। शकूर अहमद के वालिद अहमद ग़फ़ूर साहेब ख़ुद हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी के अज़ीम रहनुमा थे और 1937 में कांग्रेस के टिकट पर जीते हुए विधायाक थे। शुरुआती तालीम घर पर हासिल करने के बाद आगे की तालीम के लिए पटना युनिवर्सटी में दाख़िला लिया और इक़बाल हॉस्टल में रह कर पढ़ाई करने लगे जो उस समय मोहमडण हॉस्टल कहलाता था।


वो 1942 का दौर था, गांधी जी के क़ियादत में युसुफ़ जाफ़र मेहर अली ने “अंग्रेज़ो भारत छोड़ो” का नारा दिया देखते ही देखते पुरे भारत में चिंगारी आग की शकल ले ली। पटना युनिवर्सटी में भी छात्रों इसमे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और युनिवर्सटी की लाईब्रेरी और दिगर ऑफ़िस को आग ते हवाले कर दिया। उस समय पटना युनिवर्सटी के अंग्रेज़ स्टाफ़ ने मोहमडण हॉस्टल(इक़बाल हॉस्टल) में आकर वहां रह रहे मुस्लिम छात्रों को ये कह कर भड़काने की कोशिश की के देखो हिन्दु लड़के पटना युनिवर्सटी के लाईब्रेरी में आग लगा रहे हैं। ये सुनते ही हॉस्टल में मौजूद लड़के फ़ौरन अंग्रेज़ स्टाफ़ के साथ हो लिए, मात्र 18 साल के शकूर अहमद जिन्हे सियासी समझ वालिद स्वतंत्रता सेनानी अहमद ग़फ़ूर से विरासत में मिली थी ने फ़ौरन इस बात का विरोध किया और कहा “ये हिन्दु और मुसलमानो को लड़वाने की साज़िश है, क्युंके अगर इस स्टाफ़ की नियत सच में साफ़ होती तो ये हिन्दु लड़के ना कह कर आराजक तत्व कहते” शकूर अहमद साहेब की बात सारे छात्रों को समझ में आ गई और देखते ही देखते साल छात्र वापस हॉस्टल में चले गए। अंग्रेज़ स्टाफ़ शकूर अहमद से बहुत नाराज़ हुआ और अगले दिन ही उन्हे पटना युनिवर्सटी ये कह कर निकाल दिया के आप हमारे कॉलेज मैं पढ़ने लायक़ नही हैं। इसके बाद शकूर अहमद साहेब ने वापस मुड़ कर नही देखा और अपने “भारत छोड़ो आंदोलन” में कूद पड़े। अंग्रेज़ो ने गोली चलाई, काफ़ी साथी शहीद हुए और कई दोस्त घायल हुए। यहां तक के रुम पार्टनर को भी गोली लगी तो उसे कांधे पर उठा कर पटना मेडिकल कॉलेज ले गए। अंग्रेज़ो ने पुरे हॉस्पिटल को घेर लिया, शूट ऑन साईट का ऑर्डर था, इस लिए नाव की मदद से गंगा नदी पार किया और काफ़ी दिन अंडर ग्राऊंड रहे।


फिर वालिद स्वतंत्रता सेनानी अहमद ग़फ़ूर के साथ जंग ए आज़ादी में लगातार हिस्सा लेते रहे और 1947 में हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ, पर 1949 में सर से वालिद का साया उठ गया। 28 साल की उम्र में 1952 में पहली बार विधायक बने और इसी तरह पांच बार चूने गए। और शकूर अहमद वाहिद शख़्स है जिन्हे बिहार विधानसभा के उपसभापति पद पर 2 बार बैठाया गया। इनका पहला कार्यकाल 1 जुलाई 1970 से 8 जनवरी 1972 तक रहा और दुसरा कार्यकाल 4 जुन 1972 से 30 अप्रेल 1977 तक रहा। और बिहार विधानसभा के इतिहास मे उपसभापति पद पर सबसे अधिक दिन रहने वाले शख़्स का नाम शकूर अहमद ही है।


मिथिलांचल के विकास में भी शकूर साहब के महत्वपूर्ण योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। जब तक वो सियासत मे रहे कर्मठता के साथ विकासात्मक कार्यो के लिए उनका प्रयास निरंतर जारी रहा। उनके कार्यकाल में विकास की कई मंजिल तय की गई। दरभंगा मेडिकल कालेज तथा मिथिला विश्वविद्यालय का निर्माण उनके कार्यकाल मे ही हुआ. 13 जुलाई 1981 को शकूर अहमद ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहा। कांग्रेस के क़द्दावर नेता पुर्व सांसद व पुर्व मंत्री डॉ शकील अहमद उनके बेटा हैं, और वो उनकी सियासी विरासत को संभाल रहे हैं।

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Source heritage times

By,  Md Umar Ashraf

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संकलन - अताउल्ला खा पठाण सर टूनकी, संग्रामपुर, बुलढाणा महाराष्ट्र

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