*मसला अज़ान का नहीं कुछ और है*
🪶 एम.आय.शेख.
*तूफ़ां बडे गुरूर से ललकारता रहा*
*कश्ती बडे नियाज़ से ज़िद पर अडी रही*
∆ अज़ान को लेकर देश में नए सिरे से बहेस शुरू हो गई है. राज ठाकरे ने लाऊडस्पिकरों पर दी जानेवाली अजान के खिलाफ मोर्चा जबसे मोर्चा खोल दिया है, ये विवाद महाराष्ट्र की सीमा से बाहर निकलकर उत्तर भारत में फैल गया है. महाराष्ट्र में भले ही किसी मस्जिद के सामने हनुमान चालिसा पढने का वाकीया पेश नहीं आया हो लेकिन उत्तर भारत में कई मस्जिदों के सामने लाऊड स्पिकर पर हनुमान चालिसा पढने की घटनाएं घट चुकी हैं.
∆ पुना शहर के प्रसिद्ध वकील असीम सरोदे ने राज ठाकरे को खुला चॅलेंज देते हुए ये कहा है के, उच्च न्यायाल ने अजान की आवाज को लाऊड स्पीकर पर कम डेसिबल पर रखने का हुक्म दिया है. लेकीन राज ठाकरे मस्जिदों से लाउडस्पिकर निकालने की जिद पर अडे हैं. मैं उनसे ये आवाहन करता हूं के, अगरचे किसी अदालत का ये फैसला है के मस्जिद से लाऊड स्पीकर उतारे जाएं तो उस आदेश का पुना में जाहीर प्रदर्शन करें. दर असल ऐसा कोई आदेश है ही नहीं. असीम सरोदे की इस बात में दम है. असल में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के तहेत ये मामला आता है. मस्जिद हो या मंदीर उन्हें बनाना, उसमें लाउड स्पिकर लगाना और कानूनी सीमा में रहते हुए कम आवाज में उसपर धार्मिक क्रियाकलाप करना ये हर नागरिका का संवैधानिक अधिकार है. इसलिए राज ठाकरे की ये मांग की मस्जिदों से लाऊउ स्पीकर हटाएं जाएं ये असंवैधानिक है. सौभाग्य से सरकार इसी मौकूफ पे अड गई है.
∆ रही बात मुसलमानों की तो जिन मस्जिदों पर लाऊउ स्पीकर पर अजान देने की इजाजत नहीं ली गई है उस मस्जिद के कमिटी के लोगों की ये जिम्मेदारी है के वो स्थानिक पुलिस उपाधीक्षक कार्यालय मेंं जाकर कानूनी तौर पर लाऊड स्पीकर पर अजान देने की इजाजत हासिल कर लें.
जिसके लिए पांच नमाजों का अंदाज़न वक्त और तीन मिनट का लाऊउ स्पीकर इस्तेमाल करने का समय उसमें डालकर इजाजतनामा ले लें. और जिन मस्जिदों के पास इजाज़तनामा है वो लाऊड स्पीकर की आवाज को नियंत्रित करें. सिर्फ मस्जिद के आसपास के लोगों तक अजान की निदा पहूंचे. इससे ज्यादा आवाज न चढाई जाए.
♦️ दरअसल मसला अजान का नहीं कुछ और है. मसला मुसलमानों से नफरत का है. और इसके लिए जितना अजान का विरोध करनेवाले जिम्मेदार हैं उतने ही मुसलमान भी जिम्मेदार हैं. वो इस तरह के गुजिश्ता 1400 सालों से हम हिंदू भाईयों के साथ रहते आए हैं. उनके सुख-दुख में शरीक होते आए हैं. लेकिन कभी हमने उनतक इस्लाम का पैगाम उनकी भाषा में गंभीरता से पहूंचाने की कोशिश नहीं की. वो इस्लाम से आज तक अनभिज्ञ हैं. इसीलिए वो इसे अपने लिए खतरा समझ रहे हैं. जिसका नतीजा ये हो रहा है के, हर आठ दिन में एक नया इश्यु लेकर मुसलमानों का विरोध किया जा रहा है. कभी लव्ह जिहाद के नाम पर, कभी घरवापसी के नाम पर, कभी दाढी के नाम पर, कभी टोपी के नाम पर, कभी हिजाब के नाम पर, कभी हलाल मीट के नाम पर, कभी गोमांस के नाम पर, कभी कपडों के नाम पर एक ना एक कारण बताकर विरोध करना और मीडिया द्वारा उसे खूब उछाला जाना अब ये आम बात हो गई है. इसलिए अजान या हिजाब के पीछे का कार्यकारणभाव समझाते बैठने से बेहतर है के, उन्हें सीधीे इस्लाम की आत्मा से परिचित कराया जाए. जैसा के हमारे पैगंबर सल्ल. और उनके असहाब ने किया था. तभी हालात बदलेंगे. वर्ना इसी तरह आप जवाब देते रहे जाएंगे सवालों का सिलसिला खतम नहीं होगा.
∆ यहां मुझे एक कहानी याद आ रही है, एक आदमी को अपनी बीवी पसंद नहीं थी. इसलिए वो उसे प्रताडित करने के नित नए बहाने तलाशता था. कभी मछली पकडकर लाता और बिवी से पूछता इसे सुखा बनाएगी या पतला. बिवी अगर सुखा कहती तो पतला क्यूं नहीं बनाती कहेकर मारता. और पतला कहेती तो सुखा क्यूं नहीं बनाती कहेकर मारता. जब वो ये कहती के मैं सुखा और पतला दोनों बनाऊंगी तब वो कहेता, ”बहोत शानी बन रही है क्या?” कहेकर मारता. इस कहानी से आप समझ गए होंगे के इस कहानी को यहां कहेने का तात्पर्य क्या है. लिहाज़ा असल प्रश्न पर फोकस करें और दावत-ए-दीन के काम पर लग जायें.
♦️याद रहे ये काम सब पर फ़र्ज है सिर्फ उलेमा हज़रात पर ही फ़र्ज नहीं. और ये फ़र्ज़ अदा न करने वालों पर परेशानीयां तो आयेंगी ही. जिस का ज़िक्र तफहिमुल कुरआन में मौलाना अबुल आला मौदुदी रह ने दर्ज-ए-ज़ेल तरिके से किया है-
تفہیم القران
سورۃ نمبر 2 البقرة
آیت نمبر 159
أَعُوذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ
بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
اِنَّ الَّذِيۡنَ يَكۡتُمُوۡنَ مَآ اَنۡزَلۡنَا مِنَ الۡبَيِّنٰتِ وَالۡهُدٰى مِنۡۢ بَعۡدِ مَا بَيَّنّٰهُ لِلنَّاسِ فِى الۡكِتٰبِۙ اُولٰٓئِكَ يَلۡعَنُهُمُ اللّٰهُ وَ يَلۡعَنُهُمُ اللّٰعِنُوۡنَۙ ۞
ترجمہ:
جو لوگ ہماری نازل کی ہوئی روشن تعلیمات اور ہدایات کو چھپاتے ہیں در آں حال یہ کہ ہم انھیں سب انسانوں کی رہنمائی کے لیے اپنی کتاب میں بیان کر چکے ہیں ، یقین جانو کہ اللہ بھی ان پر لعنت کرتا ہےاور تمام لعنت کرنے والے بھی ان پر لعنت بھیجتے ہیں ۔160
تفسیر:
سورة الْبَقَرَة 160
علمائے یہود کا سب سے بڑا قصور یہ تھا کہ انہوں نے کتاب اللہ کے علم کی اشاعت کرنے کے بجائے اس کو ربّیوں اور مذہبی پیشہ وروں کے ایک محدود طبقے میں مقید کر رکھا تھا اور عامّہء خلائق تو درکنار، خود یہود عوام تک کو اس کی ہوا نہ لگنے دیتے تھے۔ پھر جب عام جہالت کی وجہ سے ان کے اندر گمراہیاں پھیلیں، تو علما نے نہ صرف یہ کہ اصلاح کی کوئی کوشش نہ کی، بلکہ وہ عوام میں اپنی مقبولیّت برقرار رکھنے کے لیے ہر اس ضلالت اور بدعت کو، جس کا رواج عام ہوجاتا، اپنے قول و عمل سے یا اپنے سکوت سے الٹی سند جواز عطا کرنے لگے۔ اسی سے بچنے کی تاکید مسلمانوں کو کی جارہی ہے۔ دنیا کی ہدایت کا کام جس اُمّت کے سپرد کیا جائے، اس کا فرض یہ ہے کہ اس ہدایت کو زیادہ سے زیادہ پھیلائے، نہ یہ کہ بخیل کے مال کی طرح اسے چھپا رکھے۔
∆ अब भी अगर बात समझ में न आये तो फिर जान लो के-
*ख़ुदा ने आज तक उस क़ौम की हालत नहीं बदली*
*न हो जिस को ख़याल ख़ुद अपनी हालत के बदलने का*
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