3 सप्टेंबर जयंतीयुसूफ मेहर अली: 'भारत छोड़ो' और 'साइमन गो बैक' का नारा देने वाले क्रांतिकारी

3 सप्टेंबर जयंती
युसूफ मेहर अली: 'भारत छोड़ो' और 'साइमन गो बैक' का नारा देने वाले क्रांतिकारी
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*भारत की आज़ादी में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का महत्वपूर्ण योगदान रहा, जो आज़ादी के सिपाहियों द्वारा लड़ा गया आखिरी आंदोलन साबित हुआ था. इस ‘अगस्त आन्दोलन’ (भारत छोड़ो आंदोलन) ने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिलाकर रख दी थी, जिसके बाद अंग्रेजों को मजबूरन भारत को गुलामी की जंजीरों से आज़ाद करना पड़ा.*

हालांकि इस आन्दोलन में कई महान क्रांतिकारियों ने अपना योगदान दिया, लेकिन बहुत कम लोग इस बात से वाक़िफ़ होंगे कि आख़िर इस क्रांतिकारी नारे को किस स्वतंत्रता सेनानी ने दिया था.

*वो कोई और नहीं बल्कि एक बड़े बिजनेस मैन का बेटा और मजदूर व किसानों का राजनेता 'युसूफ मेहर अली' थे.*

*युसूफ मेहर अली ने ‘भारत छोड़ो’ के नारे के साथ ही ‘साइमन गो बैक’ का भी नारा दिया था.* यही नहीं इन्होने मजदूर व किसानों के संगठनों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई थी.
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युसूफ मेहर अली का जन्म 3 सितम्बर 1903 में हुआ. इनके पिता मुंबई के बड़े व्यापारी थे. दरअसल इनके दादा ने मुंबई में एक कपड़ा मील की स्थापना की थी, जो शायद मुंबई की पहली कपड़ा मील थी. इसके बाद ही इनका परिवार दिन दूना रात चौगुना तरक्की करता चला गया.
 आपने वकालत की तालीम पूरी कर मुल्कु की आज़ादी की लड़ाई के लिए अपने को वक्फ कर दिया। वकालत की पढ़ाई के दौरान ही आपने एक आर्टिकल लिखा, जिसमें ब्रिटिश हुकूमत
के अमानवीय व्यवहार पर कड़ा हमला किया गया था। आपने लिखा कि ब्रिटिश शासक कुत्ते के
समान हैं। अगर आप उन्हें लात मारेंगे तो वे आपके तलवे चाटेंगे, लेकिन जब आप उनके तलवे चाटेंगे तो वे लात मारेंगे। इसके लिए ब्रिटिश अखबारों ने बड़ी नाराज़गी ज़ाहिर की। 

मेहर अली ने सन् 1925 में 22 साल की उम्र में यूंग इण्डिया सोसायटी के नाम से नौजवानों की एक टीम बनाकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ उन्हें मुल्क की आज़ादी की लड़ाई के लिए ट्रेनिंग दी। 21 जनवरी सन् 1928 को सोसायटी की मीटिंग में एक प्रस्ताव के ज़रिये टोटल इंडीपेंडेंस और साइमन कमीशन के बाइकाट का फैसला लिया गया। कांग्रेस के बड़े नेताओं ने इसे एक बचकाना हरकत बताया। युसुफ मेहर अली ने इस पर जवाब देते हुए कहा कि मुल्क की आज़ादी के लिए वक्त पर बच्चे को भी बाप बनना पड़ता है।

*साइमन गो बॅक नारे की गुंज से ब्रिटिश डर गये*
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जब साइमन कमीशन की शिप बाम्बे के मोले शिपिंग यार्ड स्टेशन पर पहुंची और साइमन ने जैसे ही पैर नीचे उतारा, वैसे ही युसुफ मेहर अली ने छापा मारकर अपनी नौजवान सेना के साथ पुलिस को धक्का देते हुए साईमन गो बैक का नारा बुलंद किया। अंग्रेज़ नौकरशाहों ने सबकी बहुत पिटाई की और गिरफ्तार कर लिया। मेहर अली को सज़ा के साथ-साथ लीगल प्रैक्टिस से भी डीबार कर दिया गया ।

युसूफ़ और उनके युवा क्रांतिकारियों की गूंज इतनी बुलंद हुई की. रातों रात ही प्रदर्शन की खबरें आग की तरह फ़ैल गई, जिसके बाद महात्मा गाँधी के साथ ही हर किसी के ज़बानों पर ‘साइमन गो बैक’ की सदा गूँजने लगी.

शहर भर में अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था, लोग हड़ताल पर बैठ गए थे. इसके बाद तो ‘साइमन गो बैक’ नारे के साथ ही युसूफ मेहर अली का भी नाम मशहूर हो गया

जेल से आने के बाद आपने वीकली मैग़ज़ीन वैनगार्ड शुरू की जिसने नौजवानों में लड़ाई के लिए जोश पैदा करने का काम किया। उनके द्वारा यूथ इण्डिया के नौजवानों को ट्रेनिंग देने के काम की जानकारी मिलने पर अंग्रेज़ अफ़सर बहुत परेशान और नाराज हुए। नौजवानों में आपकी बढ़ती मकबूलियत और लीडरशिप को तोड़ने के लिए आपको कई बार गिरफ़्तार किया गया और यातनाएं भी दी गयी। आपने शॉप एण्ड इस्टेबलिस्मेंट एक्ट के ज़रिए दुकानों पर काम करनेवाले मुलाज़िमों का शोषण बंद कराया। मेहर युसुफ़ अली साहब ने सत्याग्रह मूवमेंट में भी नुमाया किरदार अदा किया। आपने सभी आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और पुलिस का जुल्म और ज़्यादतियां भी सहीं।

*आपको सन् 1942 के क्विट इण्डिया आंदोलन का हीरो भी कहा जाता था।*--- 
*‘भारत छोड़ो’ का दिया नारा*
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1942 में कांग्रेस की कुछ मांगों को नज़रंदाज़ किया गया, जिसमें भारत की पूरी आज़ादी की मांग शामिल थी. इसके तुरंत बाद बॉम्बे में गाँधी जी के नेतृत्व में एक बैठक बुलाई गई, जिसमें आंदोलन करने और उसके नारे के बारे में राय मशविरा लिया गया.

गांधी जी के सामने कई अन्य नेताओं के स्लोगन पेश किये गए, जो उन्हें पसंद नहीं आया, लेकिन युसूफ मेहर अली ने तभी इस आन्दोलन को ‘क्विट इंडिया’ (भारत छोड़ो) का नाम दिया. इस भारत छोड़ो नारे को गाँधी जी ने मंज़ूरी दे दी. इसके बाद अंग्रेजों के विरुद्ध ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू हो गया.

इसी बीच मेहर अली ने राष्ट्रव्यापी आन्दोलन का रूप देने के लिए ‘क्विट इंडिया’ नामक पुस्तिका भी प्रकाशित कर डाली, जो आंदोलन के नारे को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसकी कई प्रतियाँ हाथों हाथ बिक गई थी.

आगे इस भारत छोड़ो आन्दोलन में कई समाजवादियों को जोड़ा और इसका अच्छे तरीके से निर्वहन भी किया. इसके बाद बाकी क्रांतिकारियों की तरह इन्हें भी फिर से जेल जाना पड़ा, इसी दौरान इन्हें दिल का दौरा पड़ा, हालांकि जेल कर्मचारियों ने इनके बेहतर उपचार के लिए सेंट जार्ज अस्पताल ले जाने की पेशकश की, लेकिन इन्होंने अन्य बीमार स्वतंत्रता सेनानियों के लिए भी इस सुविधा की मांग कर डाली.

परन्तु ब्रिटिशों ने इससे इंकार कर दिया ऐसे में इन्होंने भी उपचार न कराने का फैसला किया, लेकिन इसी आंदोलन के बाद ही अंग्रेजों पर गहरा दबाव पड़ा था. फिर 1943 में इनको जेल से रिहा कर दिया गया.

मेहर ने सोशलिस्ट पार्टी की तरफ़ से मार्च 1948 में बाम्बे लेजिसलेटिव एसेम्बली का
चुनाव भी जीता। आज़ादी के लिए दी गयी आपकी कुर्बानी और सादगी मुल्क के नौजवानों के लिए रोल मॉडल भी है। यरवदा जेल में मेहर पर अंग्रेज़ अफ़सरों ने इतना जुल्म किया था कि उस वक्त की अंदरूनी चोट की वजह से जून सन् 1950 में आप बहुत सख़्त बीमार पड़े और अस्पताल में ही आख़िरकार 2 जुलाई 1950 को युसूफ मेहर अली ने 47 साल की ही उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया. जैसे ही यह खबर लोगों तक पहुंची इसका उन्हें बहुत दुःख हुआ. मुम्बई में गम का बादल छा गया, लोगों ने अपना प्यारा नेता जो खोया था.

मौत के अगले दिन तो मुंबई रुक सी गई. इस दिन बस, ट्रेन के साथ ही लगभग स्कूल, कॉलेज, दुकानें कारखाने और मील सभी बंद पड़े नज़र आये. सिर्फ आधिकारिक तौर पर मुंबई का स्टॉक एक्सचेंज मार्केट ही खुला रहा, लेकिन यहाँ भी व्यापार थप रहा.
फिर युसूफ मेहर अली की अंतिम यात्रा में अधिक भीड़ देखने को मिली और लोगों के आँखों में आंसू छलक रहे थे. इसके बाद महान क्रांतिकारी को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया.

खैर, इसी कड़ी में वह शहर जो कभी नहीं रुका था, मगर उस इंसान की याद में थम सा गया था, जिसने सचमुच शहर के कल्याण और देश के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था.
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संदर्भ 1) THE IMMORTALAS
-syed naseer ahamed

2)लहू बोलता भी है

3)khurshid aalam
Roar.media
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अनुवादक तथा संकलक लेखक- अताउल्ला खा रफिक खा पठाण सर 
सेवानिवृत्त शिक्षक
सेवानिवृत्त शिक्षक
टूनकी बुलढाणा महाराष्ट्र
9423338726

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