*दारुल उ़लूम देवबंद हिंदुस्तान की शान
तमाम हिंदुस्तानियों को दारुल उ़लूम का 158वां यौमे बुनियाद [स्थापना दिवस] मुबारक हो| देश के ग़द्दार, अंग्रेज़ों के लिए नासूर और हिंदुस्तानियों में ह़ुब्बुल वतनी जगाने वाला एशिया का सबसे बड़ा मदरसा [इस्लामी विश्वविद्यालय] जिसने पूरी कायनात को मुता'स्सिर किया है| यह मदरसा अंधविश्वास, कूरीतियों व अडम्बरों के विरूद्ध इस्लाम को अपने मूल और शुद्ध रूप में प्रसारित करता है....
नवाब सिराजुद्दौला के नाना [अ़ली वर्दी ख़ान] की अंग्रेज़ों की ख़िलाफ जीत [1754], प्लासी की जंग [1747], बक्सर की जंग [1764], मैसूर की जंगें [1782-99] के बाद अंग्रेज़ों के बढ़ते सियासी असरात के साथ मिशनरी वर्क भी कर रहे थे और बग़ावत का ज़िम्मेदार उ़लमा ए किराम [मुस्लिम धर्मगुरुओं] को मानते हुए उन्होंने बड़ी तादाद में दीनी मदारिस तबाह किए...
वलीउल्लाही तह़रीक उर्फ वहाबी तह़रीक [1782], जंगे शामली (मुज़फ्फरनगर) [1857], तह़रीके देवबंद [1866], कांग्रेस का क़याम [1884], तह़रीके तर्के मवालात/स्वदेशी आंदोलन [1905], रेशमी रुमाल [1912], जमीयत उलमा ए हिन्द [1919], तह़रीके ख़िलाफ़त [1920], मोपला बग़ावत [1921], तह़रीके अ़द्म तआ़वुन/असहयोग आंदोलन [1921], चौरा चौरी पुलिस फायरिंग [1922], नमक आंदोलन [1930], भारत छोड़ो तह़रीक [1946] जैसी कई तह़रीक़ेंहिंदुस्तान की आज़ादी के लिए चलाई गईं| लाखों उ़लमा ह़ज़रात [मुस्लिम धर्मगुरुओं] और दीगर हिंदुस्तानियों ने अपनी जानों के नज़राने मुल्क की ह़िफाज़त के लिए निसार कर दिए....
हिंदुस्तान में इस्लाम की हिफाज़त और अंग्रैज़ों से मुल्क को आज़ाद कराने के लिए अल्लाह त'आ़ला ने चंद शख्सियात को पैदा किया| इनमें से एक अहम शख्सियत "ह़ुज्जत उल इस्लाम हजरत मौलाना मोहम्मद क़ासिम नानोतवी रह़मतुल्लाह अ़लैह" की थी, उस जमाने में इस्लाम की बक़ा, इस्लामी अक़ाइद, इस्लामी फिक्र और इस्लामी तहज़ीब के ह़िफाज़त के लिए मौलाना ने एक तहरीक चलाई जिसको "तहरीक ए देवबंद" कहा जाता है| जगह-जगह मदरसे क़ायम किए| इस मक़सद के लिए उन्होंने अपने रुफक़ा [हाजी आबिद हुसैन देवबंदी रहमतुल्लाह अलैह, मौलाना जुल्फिक़ार अली देवबंदी रहमतुल्लाह अलैह, मौलाना फज़लुर रहमान उस्मानी रहमतुल्लाह अलैह और मौलाना रफीउद्दीन रहमतुल्लाह अ़लैह] की मदद से 15 मुहर्रम 1283 हिजरी मुताबिक 30 मई 1866 ईसवी जुमेरात के दिन ज़िला सहारनपुर में वाक़ेअ़ देवबंद नामी मकाम पर एक दारुल उलूम की बुनियाद रखी ताकि यह मुसलमानों में नज़्म पैदा करें| जवान को इस्लाम और मुसलमानों की अस्ल शकल में क़ायम रखने में मुई़न हो|
एशिया की इस अज़ीम दर्सगाह का आग़ाज़ देवबंद की एक मस्जिद छत्ता मस्जिद के शहर में अनार के दरख्त के साए में एक उस्ताद [मुल्ला महमूद] और एक तालिबे इ़ल्म [महमूद हसन] से हुआ जो बाद में "अज़हर ए हिंद" कहलाए और जिसे "दारुल उलूम देवबंद" के नाम से शोहरत हासिल हुई|
बक़ौल हजरत हाजी इमदादुल्लाह मुहाजिर मक्की रहमतुल्लाह अ़लैह "दारुल उलूम देवबंद, हिंदुस्तान में बक़ाए इस्लाम और तह़फ्फुज़े इ़ल्म का ज़रिया है..."
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