मक्सूद काझी सहाब...

 मक्सूद काझी सहाब...






मेरा आजतक जिन अच्छे शख्सीयतों से मिलना हुआ. उनमें की बहोत ही मुखलीस, चेहरे व मिजाज से मासुमीयत भरी शख्सीयत मक्सूद सहाब थे. हम  जहां भी एकदूसरे को देखते तो ठहरकर बडे खुलूस के साथ मिलते. ऐसा लगता, मानों हम बहोत गहरे दोस्त हैं, कई सालों से हम एक दूसरे को जानते हैं. आसपास की होटल में बैठकर चाय पीते. गुफ्तगू करते. मक्सूद सहाब नमाज के पाबंद. बारीश हो, धूप हो या सर्दी हो. अपने खालीक से किसी भी मौसम में मिलने पहूंचते. मगर उन्हें रब्बुल आलमीन ने आखिरकार अपने पास, बरोज शनिवार , २१.१२.२०२४ के दिन बुला ही लिया. 

एक दिन ऐसे ही चाय पीते-पीते मैंने आवेज भाई के बारे में बात निकाली तो उन्होंने कहा वो मेरे फर्जंद हैं. फिर आवेज भाई के बारे में बहोत देर तक बातचित हुई. अपने फर्जंद के बारे में उनके खयाल बहोत अच्छे थे. उनके तालीम व तरबियत और आवेज भाई के मेहनत पर उन्होंने अपने खयाल का इजहार किया. 

आवेज भी मेरे अच्छे दोस्त हैं. बहोत ही मुखलिस, अख्लाक पसंद, अदब से भरपूर. मक्सूद सहाब के जाने से मैंने एक पसंदीदा शख्सीयत, मेरे लिए दुआ करनेवाले और समाज ने एक नेक इन्सान को खोया है. 

बहोत कम लोग होते हैं जो अपने बच्चों के उम्र के नौजवानों से दोस्ती करते हैं. अच्छी बाते बताते हैं. पढाई के बारे में अवेअरनेस पैदा करते हैं. बडे खामोशी से अपने काम में लगे रहनेवाले मक्सूद काझी सहाब. मुझे वो बशीर मियाँ कहेकर बात करते. उनसे मिलकर मुझे बडा अच्छा लगता. हमेशा मस्जिदे महेबूबिया के पास मिला करते थे. अल्लाह तआला उन्हें जन्नतुल फिरदौस में जगह अता करे और घरवालों को सब्र ए जमील अता करे. आमीन.    - बशीर शेख 'कलमवाला'

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