मुस्लिम मराठी साहित्य चळवळ का कवि सम्मेलन बडे उत्साह से हुआ
ऑनलाइन सम्मेलन में मिली लोगों की वाह वाह....
(विशेष रिपोर्ट-अनिसा शेख)-ग्रामीण मुस्लिम मराठी साहित्य महाराष्ट्र राज्य आयोजित कवी सम्मेलन और मुस्लिम मराठी साहित्य पर गोष्ठी रविवार(दि.२१) को हुआ एक दिवसीय दुसरा ऑनलाइन कवि सम्मेलन यह सम्मेलन दो हिस्सो में आयोजित किया गया।व्याख्यान गोष्ठी और कवी सम्मेलन।उसमे प्रेक्षकोमे बहुत ही उत्साह दिखाई दिया। सम्मेलन के अध्यक्ष स्थान पर कवि एॅडव्होकेट हाशम पटेलजी (लातुर) उद्घाटन प्रख्यात समीक्षक प्राध्यापक डॉक्टर अकरम पठानजी (नागपुर) इन्होने किया। प्रमुख अतिथि कवि के टी काझीजी (औसा) एॅडवोकेट जमील देशपांडेजी (जलगांव )हबीब भंडारेजी (औरंगाबाद )इन लोग उपस्थित थे ।पहले सत्र में प्राध्यापक डॉक्टर अकरम पठानजी इन्होंने मुस्लिम मराठी साहित्य की पार्श्वभूमि इस विषय पर भाष्यकर अपने विचार प्रकट किए ।मराठी मुस्लिम इस फेसबुक पेज पर वह लाइव दिखाया गया।
निमंत्रित कवियों का कवि सम्मेलन दूसरे सत्र में कवि एॅडव्होकेट हाशम पटेलजी इनकी अध्यक्षता में हुआ ।उन्होंने उनकी पाठ्य पुस्तक में पठीत कविता"शांतीगीत" इस कविता का पठन किया ।कवि के टी काझीजी इन्होंने "काजल" इस कविता में से "ठारच मारायचं मला तर तलवार नको ,पाजळ साहिल कोणा दुसर्यासाठी सजव,तू नयनात काजळ.इस तरहसे परोपकार को उदघाटित करनेवाली कविता का पठन किया। एॅडव्होकेट जमील देशपांडेजी इन्होंने फादर डे के अवसर पर जो कविता पठन कि उसे श्रोतागण से बहोत वाह वाह मिली।उन्होने "बापाचा जनाजा होता खांद्यावर"इस कविता का पठन किया.कवी चाँद तरोडकरजीने"खड्डा मनात मोठा खोदून पहातो,दु:खास त्यात आता लोटून पाहतो,स्वप्नात चाँद माझ्या येईल काय ती,चल मग उगल आता झोपुन पाहतो "यह कविता पठित की।कवयीत्री अनिसा शेख(पुणे)इन्होंने स्त्रीवादी कविता पठन कि,"मी आजची नारी अबला नाही,कमजोर तर नाहीच नाही,आवाज उठवते अन्याया विरुध्द ,वाकड्या नजरांना सोडणार नाही"कवि वाय के शेख इन्होंने"तुझ्याच लकबी तुझ्याच सवयी ,काळजात माझ्या बसली कविता "पठीत की।कवयीत्री शबाना मुल्ला इन्होने "शेतकरी कविता" पठित की,"माझ्या सोन्याचा संसार,जरी पोट शेतावर,घाम गाळते अंगाचा,रोज काळ या मातीवर,कवी अहमद पिरनसाहब इन्होंने"बोलतो मराठी,लिहितो मराठी,ऐकतो मराठी,इस तरह का संदेश अपने कविताके माध्यमसे दिया।
कवि हबीब भंडारे इन्होंने"सुन्या माळावर दर्गा.नेटात ऊरुसा मधली गजबजलेली दुआ मन्नत मांगते हुए तुरबत से मुखातीब कविता पठन कि।कवी दांपत्य जाकिर तांबोलीज और सफुरा तांबोलीजी इन्होंने भी इसमे सहयोग दिया।कवयीत्री सुफरा तांबोलीजीने कोरोना के इस अवधी मे"मला माहेराची ओढ लागली इस कविता का पठन किया।कवयीत्री दिलशाद सैय्यदजी अहमदनगर इन्होंने "गाडगे बाबा"इनपर एक अभंग पठन किया"गरिबाचे वाली,अनाथांचे साथी,खापरच माथी,सदोदित,स्वच्छतेचा नारा,घरोघरी दिला,धावे सफाईला
अंगणातही सफाईच "अंभग पठीत किया।इस सम्मेलन में कवी
जाकिर तांबोली कवयीत्री जस्मीन
शेख ,कवी बा.ह मगदूम,अॅड.शेख इक्बाल रसुलसाहब,कवी अख्तर शेख,कवी बी एल खान इन्होंनेभी अपनी कविताएँ पठीत की.कवी खाजाभाई बागवान इन्होने इस प्रोग्रामका संचालन किया तो कवी संस्थापक शफी बोल्डेकर इन्होंने आभार माने.
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