ये कविता अँड खैसर वकिल सहाब के वालिद साहब मरहुम सय्यद खाजा अब्दुल मन्नान सहाब नक्शबंदी जो मरहूम मुजिबद्दिन पटेल साब के खास दोस्त थे उन्होंने पटेल साब के शान में लिखी थी जो आज भी फोटो फ्रेम में मौजूद है
बस अब यादें .....
तहेनियत अल्हाज अँड मोहम्मद मुजीबोद्दिन पटेल सहाब बि ए एल एल बी ता उस्मानाबाद ज़िला लातुर
( उर्दू के साथ अरबी और फ़ारसी लफ्ज़ ज्यादा है )
खोशाक पाई ओ तौफीक़ सन ज़वानी में
बरहा काबा गऐ हो दयारे अहमद (सल्लल्लाहु अलै वसल्लम) को
तुम अपनी आंख को लील्लाह चूम लेने दो
तुम्हारी आंखने देखा है सब्ज़ गुंबद को
जिनको कहते हैं सब मुजीबोद्दिन
हैं वह आला नसब मुजीबोद्दिन
अपने पेशे में वजा दार भी हैं
बे नवाओं के गमसार भी हैं
है जुदा गाना सबसे इनका हाल
यानी हर दम है बेकसों का ख्याल
फितरतन यह गरीब परवर हैं
यानी इस दौर के सिकंदर है
दर्द मंदी है इनकी फितरत में
सब का हिस्सा है इनकी दौलत में
फ़ैज़ ऐसा मग़ज रहे से है हासिल
लिपटती रहती है पांव से मंजिल
इब्तेदाहि से खास है ईमान
पाया दुनिया में दिन का रुझहान
वक्त ने ली कुछ ऐसी अंगड़ाई
आरजू ऐ हयात बराई
वह साआदत मिली जवानी में
भर गया नूर जिंदगानी में
करके आए तवाफ बैतुल्लाह
लूट आए सरवर वह कैफे निगाह
हाजिरी दी दयारे अहमद पर
मुस्कुराहट खरिदली रोककर
सर उठाया तो मिल गई दौलत
हाथ आया वसिखे जन्नत
रंग होगा अब और जीने का
मंज़र आंखों में है मदीने का
यही मन्नान की दुआ है बस तुम सलामत रहो हजार बरस
पेशकश एस के ए मन्नान
इस सन १९७५
हिंदी भाषांतर
मजहर पटेल अलमलेकर
शफा नगर औसा
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