शब ऐ बारात हकिकत....

 शब ऐ बारात हकिकत....!!




शब ऐ बारात का त्यौहार अगर इस्लाम में कोई अहमियत रखता था..तो ज़ाहिर है कि इस त्यौहार को सहाबा रज़िअल्लाह अन्हु ने भी बहुत शिद्दत से मनाया होगा..सहाबा रज़िअल्लाह अन्हु ने भी कब्रिस्तान सजाया होगा..सहाबा रज़िअल्लाह अन्हु ने हलवा भी बनाया होगा..

सहाबा रज़िअल्लाह अन्हु ने रात भर मस्जिदों में नमाज़ भी पढ़ी होगी।


दीन इस्लाम को सहाबा से ज़ियादा तो शायद कोई नही जानता था और न कोई जान पाएगा.. अल्लाह के रसूल अलैहिस्सलाम की हर सुन्नत पर सहाबा शिद्दत और शौक़ से अमल करते थे और आप अलैहिस्सलाम के हर हुक्म को सर ऐ ख़म तस्लीम करते थे।


तो डियर बिदअती आवाम और बिदअती मौलवी क्या आप मुझे ये बता सकते हैं कि.. 👇👇


कौन से सहाबा ने कब्रिस्तान को सजाया था.??


कौन से सहाबा ने रात भर मस्जिदों में जाकर नमाज़ पढ़ी थी..??


कौन से सहाबा ने हलवा बनवा कर खाया था..??


कौन से सहाबा ने हलवा बनवा कर बटवाया था.??


बिदअती मौलवियों का अपनी ही आवाम को धोखा देना।

शब्बे बारात की फ़ज़ीलत को लेकर बिदअती मौलवी अक्सर तिर्मिज़ी शरीफ की एक हदीस बयान करते हैं।


जो इस तरह है।👇👇

हज़रत आयशा रज़िअल्लाह अन्हुमा कहती है कि.. मैने एक रात रसूल अलैहिस्सलाम को गायब पाया तो मैं आप की तलाश में बहार निकली तो क्या देखती हूँ कि आप बक़ी कब्रिस्तान में हैं.. (ये वही बकी कब्रिस्तान है जिसे हम जन्नतुल बकी कहते हैं) आप अलैहिस्सलाम ने फरमाया क्या तुम डर रही थी.? कि अल्लाह और उस के रसूल तुम पर जुल्म करेंगे..?? मैने अर्ज़ किया अल्लाह के रसूल ! मेरा गुमान था कि आप अपनी किसी और बीवी के यहां गए होंगे... आप अलैहिस्सलाम ने फरमाया अल्लाह तआला पन्द्रवीं शाबान की रात आसमान दुनिया पर नुजूल फरमाता है..और बनू कल्ब की बकरियों के बालों से ज़ियादा तादाद में लोगों की मग़फ़िरत फरमाता है।।

(तिर्मिज़ी)

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यही वो हदीस है जिसको बिदअती मौलवी अपनी मस्जिदों के मिंम्बर पर खड़े होकर बहुत ज़ोर ओ शोर से बयान करतें है और शब्बे बारात के रुसुमाती कामों के एवज इसी हदीस को दलील बनाते हैं।।


उम्मते मुस्लिमा का इस बात इज्मा है कि..क़ुरआन ऐ हकीम के बाद हदीस की सब से मोतबर किताब मुहम्मद इस्माइल बुखारी रह0 की सही बुखारी है...सही बुखारी के बाद इमाम मुस्लिम की हदीस की किताब..सही मुस्लिम का नम्बर आता.. सही मुस्लिम के बाद इमाम तिर्मिज़ी की हदीस की किताब...तिर्मिज़ी शरीफ का नम्बर आता है।।


इससे आगे भी बहुत सी हदीस की किताबें है.. फिलहाल हम उनका ज़िक्र यहाँ करना मुनासिब नही समझते क्यों कि ये हमारा मौजू नही है।।


इमाम तिर्मिज़ी रह0 का पूरा नाम..

मुहम्मद बिन ईसा बिन सौरत बिन मूसा है।

कुन्नियत अबु ईसा है।


इमाम तिर्मिज़ी रह0 का मामूल था कि..

जब भी वो कोई हदीस नकल करते तो उस हदीस की सेहत सनद और दर्ज़े के बारे में भी उसी हदीस के नीचे लिख देते कि.. ये हदीस किस दर्ज़े की है..इसकी सनद कैसी है,मौजू है, मनघड़ंत है, कमज़ोर है, ज़ईफ़ है, गरीब है, मशहूर है, हसन है, सही है, या मुत्ताफिक अलैह है..साथ साथ रावियों के नाम भी लिख देते कि कौन सा रावी कैसा है।।


आइये अब मौजू की तरफ चलते हैं..


शाबान की पन्द्रवी रात के हवाले से अक्सर बिदअती मौलवी इमाम तिर्मिज़ी की इसी हदीस को दलील बना कर पेश करते है। लेकिन इन मौलवियों का फरेब ये है कि.. ये मौलवी आवाम को आधी हदीस सुनाते है..और हदीस का आखिरी हिस्सा बयान ही नही करते।।


आइये हम आप को हदीस के उस आखिर हिस्से से परिचित करातें है। मुलाहिज़ा कीजिये।👇👇


शाबान की इस हदीस को नकल करने के बाद इमाम तिर्मिज़ी रह0 इसी हदीस के नीचे लिखते हैं कि..


हम हज़रत आयशा रज़ि0 की हदीस को हज्जाज की रिवायत से सिर्फ इसी सनद से जानते हैं...इमाम तिर्मिज़ी आगे कहते हैं कि.. हमारे उस्ताद मुहम्मद इस्माइल बुखारी रह0 इस हदीस को ज़ईफ़ करार देते है।।


शाबान की हदीस को इमाम तिर्मिज़ी रह0 ने नकल करने के बाद हदीस को खुद भी ज़ईफ़ कहा और अपने उस्ताद इमाम बुखारी रह0 का भी हवाला दिया कि.. इमाम बुख़ारी भी इसको ज़ईफ़ करार देते हैं।।


आप खुद सोचिये कि..जिस हदीस को अपने ज़माने के सब से बड़े मोहद्दिस इमाम बुखारी रह0 ज़ईफ करार देतें हों भला वो हदीस सही कैसे हो सकती है।


एक बात और हम यहाँ वाज़े करतें चलें कि..इमाम मुहम्मद इस्माइल बुखारी रह0 इमाम तिरमिजी रह0 के उस्ताद है।।


लब्बोलुआब ये है कि.. इमाम तिर्मिज़ी ने इस हदीस को नकल तो किया लेकिन ये बता दिया कि ये हदीस ज़ईफ़ है।


इस हदीस का एक ही रावी है जिसका नाम हज्जाज है हज्जाज मोहद्दिसीन के नज़दीक ज़ईफ़ रावी है और सनद में दो जगह अनक़तअ भी है।।


अल्लाह इन मोहद्दिसो के दरजात को बुलंद करे और अपनी रहमतों के दरवाज़े इन पर खोले ये कितने नेक मुत्तक़ी परहेज़गार लोग थे तो हर चीज़ को बहुत आसानी से समझा कर चले गए।।


बिदअती मौलवियों का फरेब ये है कि..ये मौलवी महज़ अपने पेट की खातिर भोली भाली आवाम को गुमराह करते है अपने पेटों को भरने के लिए आधी अधूरी हदीस बयान करते हैं।


अगर ये मौलवी हज़रात आवाम में सही और पूरी हदीस पढ़ कर बयान कर देंगे तो आवाम शब्बे बारात को कब्रिस्तान नही सजाएगी न हलवे बिरयानी बनाएगी और न रुसुमाती कामों मे फुजूल खर्च करेगी अगर आवाम ने ऐसा किया तो मौलवियों की दुकानें बंद हो जाएंगी..मौलवी कभी नही चाहेंगे कि उनकी दुकानें बंद हो..वो और बड़ा चढ़ा कर झूटी बातें आवाम में मकबूल करेंगे।।


अल्लाह हमें ऐसे दीन फरोख्त मौलवियों के साए से भी बचाए और दीन ऐ मुहम्मदी पर मज़बूती से चलने की ताक़त दे. आमीन

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