सहेरा में भी जमजम नीकाल देता है

 कोयल को तरन्नुम देता है 

 फुलों को तू शबनम देता है ,

हर दर्द की राहत तेरे पास है 

  हर ज़ख्म को मरहंम देता है,

ऐ दोनों जहां के मालिक मैं 

  उम्मीद का दामन क्यों छोड़ूं,

कहेते हैं तू जिद पर आये तो 

   सहेरा में भी जमजम नीकाल देता है 

मुख़्तार कुरेशी, औसा



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