कोयल को तरन्नुम देता है
फुलों को तू शबनम देता है ,
हर दर्द की राहत तेरे पास है
हर ज़ख्म को मरहंम देता है,
ऐ दोनों जहां के मालिक मैं
उम्मीद का दामन क्यों छोड़ूं,
कहेते हैं तू जिद पर आये तो
सहेरा में भी जमजम नीकाल देता है
मुख़्तार कुरेशी, औसा
कोयल को तरन्नुम देता है
फुलों को तू शबनम देता है ,
हर दर्द की राहत तेरे पास है
हर ज़ख्म को मरहंम देता है,
ऐ दोनों जहां के मालिक मैं
उम्मीद का दामन क्यों छोड़ूं,
कहेते हैं तू जिद पर आये तो
सहेरा में भी जमजम नीकाल देता है
मुख़्तार कुरेशी, औसा
सद्भावनेने राहु या ! (कवी: बशीर शेख "कलमवाला") डोळे भरून पाहावे, मनामध्ये घर करावे, प्रे…
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