पैकर_ऐ_अक़लाक मामून सर

 पैकर_ऐ_अक़लाक मामून सर



पूरा नाम  _  शेख मामून अ. राशिद

पैदाईश    _  12/10/1963

वफात     _  22/05/2021


        "ऐ अकेले आनेवाले तू अकेला जायेगा" ये जुमला हर जमाने में सही है। दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो  दिलों को जोड़कर उनमें मक़ाम बनाते हैं। अकेले निकल जाते हैं लेकिन हज़ारो दिलों मैं " यादों" की शक्ल मैं जिंदा व जावेदा रहते हैं। ऐसी ही शख़्सियत के मालिक थे शेख मामून सर। वतन मोमिनाबाद(अंबाजोगाई) जिल्हा बीड लेकिन पिछले 34-35 बरसों से आप औसा जिल्हा लातूर, अज़ीम उर्दू प्रा. स्कूल मैं मुलाजिमत करते रहे। इसी साल अक्टोबर 2021 मैं अपनी मुलाजिमत से सबकदोश (वजीफा याब) होने वाले थे लेकिन कुदरत ने इस से पहले ही उन्हे हम से छिन लिया। ये ख़बर सुन कर तमाम जानने पहचानने वालों मैं ग़म और अफसोस की लहर दौड गयी। 


        आला अक़्लाक, मिलनसार मिजाज़, उर्दू जबान, इल्म का शौक, तालीमी सरगरमीयों मैं दिलचस्पी और स्कूल में सब से मुहब्बत ने उन्हें पैकर_ऐ_अक़्लाक  बनाया था। अपने मुतल्लकीनों के दिलों में अपना मुनफर्द मक़ाम बनाने मैं वो कामयाब हुएे थे। स्टाफ में से दोस्तों में से अगर कोई बीमार होता तो अयादत (बीमार पुरसी) के लिए वो ज़रूर पहुंच जाते।



       ईमानदारी, दयानतदारी

, हमदर्दी, इन्सानियत अपनाईयत, मुसलसिल ये तमाम अवसाफ उनकी जिंदगी में नुमाईयां नज़र आते हैं। इन्ही अवसाफ ने उन्हे हर दिल अज़ीज बनाया था।


        उनकी जिंदगी का एक अहम पहलू ये भी रहा के वो हक़ को हक़ और  बातिल को बातिल कहने में किसी किस्म का खौफ़ न करते थे। साथी लोगों से किसी बातपर इक़्तलाफ हो तो सामने ही कहते मगर पीछे ग़ीबत करने से परहेज करते। इन खूबीयों की वजह से ही वो हर किसी को अपना बनाने में कामयाब रहते थे। शुरू से ही ईस राक़िमुल हुरुफ ने उन्हे मुक़ल्लिस पाया। 

        

       गुजिस्ता साल मेरे वजीफायाब होने पर मामून सर ने जो तक़रीर करते हुए जो तहनियत पेश की वो अपनी मिसाल आप हैं। उनका तक़रीर करने का अंदाज भी मुनफर्द था। 

     

        ये सच है कि अक़लाक और किरदार की खुशबू हमेशा जिंदा जावेदा रहती है। ये खुशबू की महक जब तक लोग याद करते रहेंगे फैलती रहेगी। जिंदा रहेगी किसीने क्या खूब कहा है 

 "किरदार व अक़लाक से महकता है आदमी 

खुशबू लगा कर कोई  मुअत्तर नही होता।"


        मरहूम मामूनसर (अपने साथी को मरहूम लिखते हुए क़लम रुक रही है।दिल यादों और जज़्बातों में गोताज़िन है। ) अपने पीछे अहलिया दो बेटियाँ, एक बेटा, नवासा, नवासियां, भाई, बहनें छोड़ गये हैं।


        अल्लाह से दुआ है "या अल्लाह ईस राक़िमुल हुरूफ ने मामून सर को परसों रमज़ान में तेरे घर से तरावीह की नमाज़ से अपने घर लौटते हुए देखा है ऐसे अपने मुक़ल्लीस बंदे की मग़फिरत अता फरमा और अपनी रेहमते कामिला अता फरमा खानदान और मुतल्लक़ीन अफराद को सबर व इस्तेक़ामत अता फरमा ....... आमीन







                   राक़िमुल हुरुफ 

                   मुल्ला जे. बी. जिलानी 

                   " राज़ " औसवी

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