होने थे जितने खेल मुकद्दर
के हो गये ,
हम तुटी नाव लेके समन्दर
के हो गये ,
खुशबू हमारे हाथ को छूकर
गुजर गयी ,
हम सबको फुल बाटके 🌹
पत्थर के हो गये ✍️
मुख़्तार कुरेशी, औसा
होने थे जितने खेल मुकद्दर
के हो गये ,
हम तुटी नाव लेके समन्दर
के हो गये ,
खुशबू हमारे हाथ को छूकर
गुजर गयी ,
हम सबको फुल बाटके 🌹
पत्थर के हो गये ✍️
मुख़्तार कुरेशी, औसा
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