15 नोव्हेंबर यौमे वफात (पुण्यतिथी) शाह वजीहउद्दीन मिन्हाजी : एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी जिसे इतिहास के पन्नो में दफ़न कर दिया गया।

 15 नोव्हेंबर यौमे वफात (पुण्यतिथी)

शाह वजीहउद्दीन मिन्हाजी : एक ऐसा स्वतंत्रता सेनानी जिसे इतिहास के पन्नो में दफ़न कर दिया गया।

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शाह वजीहउद्दीन मिन्हाजी एक महान क्रन्तिकारी, लेखक, कवि व समाज सेवी थे, जिन्होने जिन्ना की टू नेशन थ्योरी का विरोध डंके की चोट पर किया; जिसकी झालक आपको उनकी ग़ज़ल के इस मिसरे में दीखता है।


“चाहा तो था के क़ाएद ए आज़म को मान लुँ,

अल्लाह ने बचा लिया, एैसा ना हो सका..”


आपका इंतकाल 15 नवम्बर 1984 को हो गया; पर आपकी ख़्वाहिश शहादत थी, जिसके बारे में आपने अपनी डायरी 'मेरी तमन्ना' में 1 फ़रवरी 1936 को लिखते हैं :- “मेरी तमन्ना ये है के मादर ए वतन की क़ुर्बान गाह पर मेरी जान क़ुर्बान हो जाए… बिस्तर ए र्मग पर पांव रगड़ रगड़ कर मरने के बजाय अल्लाह की राह में मैदान ए जंग में या फाँसी के तख़्त पर जान दुँ… आमीन , सुम्मा आमीन- फ़क़्त”

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1947 से पहले जब पूरा हिंदुस्तान अंग्रेज़ों के जु़ल्मों सितम से परेशान था और बगावत के सिवा उनके पास कोई चारा नही बचा था इसी वक़्त में एक ऐसा शख्श भी था जिसने अंग्रेज़ों के नाक में दम कर रखा था , दम भी इतना की अंग्रेज़ों ने उन्हें जिन्दा या मुर्दा पकड़ के लाने वाले को हज़ारो रु इनाम के तौर पर देने तक का ऐलान कर दिया, फिर भी अंग्रेजी हुकुमत उन्हें कभी उनके असल नाम से नही पकड़ पाई ।


1942 मे शाह उमैर साहब के नेतृत्व में बिहार के अरवल में बगावत का झंडा बुलंद कर अरवल थाना को लहकाने वाले “डॉ सैयद शाह वजिहउद्दीन मिनहाजी” जंग ए आज़ादी के पहली पंक्ति में खड़े होकर हिंदुस्तानी अवाम को अपनी बहादुरी और वफादारी का पैगाम देते रहे।


आपकी पैदाइश 1907 में बिहार के गया ज़िला में हुई , वहीं आपकी इब्तदाई तालीम भी हुई जहा आपने मौलवी मूसा राजा साहेब से फ़ारसी 1 और मदरसा सहसराम में फ़ारसी 2 की पढाई की ,  फिर 1920 में आपका दाख़ला गया के ही इस्लामिया हाई इंग्लिश स्कूल में करवा दिया गया.


1920 में ही कांग्रेस ने सरकारी स्कूल के बायकॉट का एलान कर दिया था , जिसका नतीजा ये हुआ के आपके वालिद साहेब ने आपको उस स्कूल से निकलवा दिया फिर 1921 में “गांधी क़ौमी विद्यालय” नेशनल स्कूल का क़ायम गया में हुआ उसमे आपने 3rd क्लास में दाखला लिया , इस स्कूल में चरखा कातना और कपड़े बुनना बिलकुल ज़रूरी था .. यहाँ आपको उस्ताद मिले ‘बाबा खलील दस’ ‘क़ाज़ी अहमद साहेब’ ‘किशन प्रसाद साहेब’ जिनसे आपने ग़ज़ल पढ़ना , तक़रीर करना वैगरा सीखा ,, जिसके बाद आपको हर छोटे बड़े प्रोग्राम में हिस्स लेने के लिए बुलाया जाने लगा …


बात 1922 की है जब आप गया के बार लाइब्रेरी में टेबल पैर चढ़ कर तक़रीर दे रहे थे तब वहां मौजूद पुलिस वाले को ये पसंद नही आया और उसने आपको गिरफ्तार कर उसी बार(कोर्ट) के जज के सामने पेश कर दिया उस वक़्त आपकी उमर महज़ 15 साल थी , जज ने एक कम उमर के लड़को अपने सामने देख कर हैरतज़दा हुआ और उसने आपसे कुछ सवाल किया जिसका जवाब आपने बहुत ही बेबाकी से दिया , आपकी हिम्मत को देख जज बहुत खुश हुआ और उसने लोगो को ताकीद की के कोई आपको तंग न करे , फिर क्या था एडवोकेट मौलवी खलीलुर्रहमान साहेब ने आपको एक टेबल दी और कहा “अब इस्पे चढ़ कर तक़रीर करना” यही वो माहोल था जिसने आपको एक इंक़लाबी बनाना शुरू किया..


1923 में “इंडियन नेशनल कांग्रेस” “खिलाफत कमिटी” “आकली दल” “आल इंडिया जमीयत उलमा” का सालाना इजलास गया में धूम धाम से मनाया गया , इस इजलास में आपको आपके उमर के वॉलेंटियर का सदर बना दिया गया .. 


  फिर आपके वालिद ने आपको 1924 में पढ़ने के लिए कलकत्ता भेज दिया वहां आपने बीमारी की वजह कर 1 साल में ही पढाई को छोड़ वापस गया आ गए … गया में ही आपका इलाज हुआ जिसके बाद आपके वालिद की सारी जमा पूंजी खत्म हो गई और आपको अपनी पढाई बीच में ही हमेशा के लिए छोड़नी पड़ी ..


1930 में आपके अंदर पढ़ने का शौक़ फिर से जागा , 1931 में हुवे एग्जाम में आप टॉप कर गए पर यनिवर्सटी के एग्जाम में 6 नंबर की वजह कर नाकामयाब   हो गए .. पर आपकी हिकमत अमली को देख कर 1931 में आपको जमीयतुल तालबा गया के सदर बना दिया गया, 1931 में ही आपने हाथ से लिखी हुई  “हिंदुस्तान” नाम के पर्चे निकलना शुरू किये जिसे अंग्रेजी हुकूमत ने बाग़ीयना समझ कर जप्त कर लिया…


इसी साल रमज़ान के आख़री जुमे(जुमातुल वेदा) को आपने गया की जामा मस्जिद के सेहन में अपनी नज़म “मुस्लिम से ख़िताब” पढ़ी , नज़म सुनने के बाद पूरा मजमा जोश में आ गया , अभी आप वहां से हटे भी नही थे की सब इंस्पेक्टर ने आपको गिरफ्तार कर लिया पर आपको मुजरिम साबित नही कर सका और आप बाइज़्ज़त बरी हो गए इस वक़्त आपकी उम्र महज़ 24 साल थी …


इस हादसे के बाद आपके वालिद साहेब ने आपको “मुज़फ़्फ़रपुर” भेज दिया पर 3 माह में ही आप वहां से लौट आये .. आपने कुछ दिन गया में गुज़ारे ही थे की वालिद  ने आपको वापस मुज़फ़्फ़रपुर जाने का हुक्म सुना दिया , लेकिन आपका दिल वहां जाने को  बलकुल तैयार नही था .. वालिद साहेब ने आपको मुज़फ़्फ़रपुर तक का किराया दे कर रुखसत किया पर मुज़फ़्फ़रपुर न जा कर गया से पटना आ गए , और इत्तेहाद कॉन्फ्रेंस वालो के साथ हो लिए और कलकत्ता पहुंच गए ..


अब आपके पास बदन पर ओढ़े हुवे कपडे के इलावा कुछ नही था , जैसे तैसे कर आपने एक फोटो शूट करने वाले के यहाँ एक एजेंट का ओहदा संभाला , महीने भर मेहनत करने के बाद आपको 60 रुपया दिया गया जिससे आपने रेशमी कटपीस  का गठ ख़रीदा और और पुरे बंगाल का दौरा शुरू किया ढाका , मुर्शिदाबाद , मिदनापुर , परगना , रंगपुर होते हुवे आप असम के सरहद पर जा निकले , रस्ते में आने वाले सारे बाज़ार क़स्बे घूम लिया , बंगालियों के श्रृंगार के सामान भी आप खरदो फरोख़्त करने लगे , इसी तरह 3 माह गुज़र गया और आपको 250 रूपये का मुनाफा हुआ पर आपकी सेहत पर इसका बुरा असर पड़ा , आखिर में आपने उन रूपये का मेज़, कुर्सी, टेबल, अलमारी वगैरा ख़रीदा और 14 रूपये हर महीना के हिसाब से कमरा किराये पर ले कर इसमें कंपनी { Sa-Min Publicity & Printing Beaure } का दफ्तर खोला .. उर्दू , हिंदी , इंग्लिश का कॉन्ट्रैक्ट भी मिल गया और कुछ ही दिन में काम अच्छा जम चूका था इस वजह कर 2 हेल्पर 20 रुपया हर महीने के हिसाब से रख लिया…


1932 में ही इत्तेहाद कॉन्फ्रेंस कलकत्ता में में होने को हुई, हिंदुस्तान के तमाम सूबे से नुमाइंदे आ रहे थे और सूबे बिहार की तरफ से आपका नाम पेश कर दिया गया था .. अब आपने सारे काम को हेल्पर के हवाले कर इस कॉन्फ्रेंस को कामयाब बनाने में लग गए , इस कॉन्फ्रेंस में मौलाना अहमद सिंधी , मौलाना गुलशन खान , मौलाना इरफ़ान साहेब , मौलाना अबुल कलम आज़ाद , पंडित मदन मोहन मालवीय वग़ैरा आये हुवे थे , सबसे काम उम्र वालों में हारिस साहेब , आप और एडिटर अजमल बमबई वाले थे … किसी वजह कर इत्तेहाद कॉन्फ्रेंस टूट गई और कोई कामयाबी हाथ न लगी ..


इसी साल “आल इंडिया मुस्लिम कॉन्फ्रेंस” कलकत्ता में होने को था और आपके हिसाब से इसके पीछे पूरी तरह से यूरोप की ताक़ते थी इस लिए आपने इसका मुख़ालफ़त किया , नौजवान मुसलमानो की एक कमिटी  “बंगाल मुस्लिम नौजवान पार्टी” बना कर आपने “मुस्लिम कोंफ्रन्स” की मुख़ालफ़त शुरू की.. लोगो ने आपको ही इस पार्टी का सदर बना दिया था..


“आल इंडिया मुस्लिम कॉन्फ्रेंस” के नुमाइंदे ने भी आप लोगो के खिलाफ साज़िश शुरू की आप लोगो के बारे में तरह तरह के बेहूदा अलफ़ाज़ का इस्तेमाल किया पर आप लोग टस से मस नही हुवे और उनकी मुख़ालफ़त जारी रखा , रोज़ कलकत्ता में सुबह और शाम “आल इंडिया मुस्लिम कॉन्फ्रेंस” के खिलाफ जलसे  होने लगे पर आप लोगो को कोई खास कामयाबी हासिल नही हुई .. “आल इंडिया मुस्लिम कॉन्फ्रेंस” वालो ने जलसे की तारिख़ तए कर दी और लोग हर सूबे से आने लगे , अब कोई चारा न देख कर आप लोगो ने जस्ले की जगह पर हुड़दंग करने को ठानी , जिसके बाद  “मुस्लिम कॉन्फ्रेंस”  के लोगो से आप लोगो का टकराव हो गया जिसमे आपके कई साथी ज़ख़्मी हो गए आपको भी चोटें आई , पर आप लोग घबराये नही वापस जलसे की जगह के तरफ मुड़े और पंडाल को उखाड़ना शुरू किया जिससे पुरे मजमे में अफरा-तफरी फैल गई…


“मुस्लिम कॉन्फ्रेंस” का कोई भी नुमाइंदा तजवीज़ ले कर स्टेज पर आता तब आप और आपके साथी हंगामा कर उसे बैठने पर मजबूर कर देते जिसके नतीजे मे “मुस्लिम कॉन्फ्रेंस” की एक भी तजवीज़ अवाम के बीच में नही आई…. ये आपके लिए एक बड़ी कामयाबी थी , इस वजह कर पुरे कलकत्ता के लोग आपको पहचानने लगे और नौजवान तो आपके मुरीद हो गए थे…


1932 में ही आपको बंगाल मजलिसे अहररुल इस्लाम का सेक्रेटरी बना दिया गया , पर तिजारत की वजह कर आपने इस्तीफा दे दिया , पर 2 माह के बाद आपको वापस सेक्रेटरी बना दिया गया और आप अवाम के दबाओ में आ कर इससे इंकार न कर सके …


15 जून 1932 को सुबह 4 बजे आपके घर पर छापे पड़े CID ने आपके घर को चारो तरफ से घेर लिया था , तलाशी का वारंट दिखा कर पुलिस ने तलाशी शुरू की जिसमे उन्हें अँगरेज़ मुखालिफ बाग़ीयाना पर्चे और बहुत से गैर क़ानूनी सामान मिले , पुलिस ने सबको ज़ब्त कर लिया और आपको गिरफ्तार कर लिया और साथ चलने को कहा , पर आपने पैदल जाने से साफ़ इंकार कर दिया फिर आपके लिए मोटर लाइ गई तब तक आपने नहाया और नाश्ते किये फिर अपने दोस्तून को अलविदा कह उनके साथ चल दिया ,..


अगले दिन कलकत्ता के सारे अखबार ने इस वाक़ये को सफ़े अव्वल पर छापा .. आपको 14 दिन कि पुलिस हिरासत में भेज दिया गया जहा आप जल्लाद हर तरह के ज़ुल्म किया करता था पर आपने अपना मुह नही खोला , 14 दिन बिना किसी इंसान के पुलिस हिरासत में रहने की वजह कर आपका वज़न 18 पौंड घट चूका था आखिर में थक हार के आपको अलीपुर सेंट्रल जेल में भेज दिया गया जहाँ इंसानो की जमात देख कर आपके जान में जान आई …


मुक़दमा चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट के पास पेश हुआ आपके उपर 5 दफा लगाये गए थे जिसमे आपको 30 माह , 7 साल, 14 साल, 30 साल से लेकर फँसी तक हो सकती थी …


आपकी तरफ से कांग्रेस के नेता गुप्ता साहेब जो उस वक़्त के कामयाब वकील गिने जाते थे पैरवी केर रहे थे , और उनके साथ कंधे से कन्धा मिला कर खड़े थे जनाब मौलवी एडवोकेट शम्सुद्दीन साहेब कोल्कता हाई कोर्ट , जनाब कोंसलर जी सी मुखर्जी बंशला कोर्ट और जनाब टी पि चटर्जी .. इनलोगो की मेहनत और अवाम की दुवाएँ रंग लाइ और आप पर लगे एक भी जुर्म को कोर्ट में साबित नही किआ जा सका लेकिन फिर भी मजिस्ट्रेट  18A प्रेस एक्ट के तहत 50 रूपये का जुर्माना लगा दिए और जुर्माना नही अदा करने पर 35 दिन जी सजा मुक़र्रर कर दी, आपके पास पैसे तो थे नही इस लिए आपके क़रीबी ‘भोले मियां ‘ और ‘बुज़ुर्ग शाह’ अपने तरफ से जज को 50 रुपया अदा कर आपको रिहा करवाना चाहा पर आपको अंग्रेज़ो से इस क़दर नफरत थी के  इन फिरंगियो को आप एक फूटी कौड़ी नही देना चाहते थे इसलिए आपने इंकार कर दिया और आपने 35 दिन जेल में रहना मुनासिब समझा  …


इसके बाद आपको कोल्कता प्रेसिडेन्टिअल् जेल भेज दिया गया फिर वह से अगले दिन आपको अलीपुर सेंट्रल जेल के लिए रवाना कर दिआ गया , जेल में आपके उम्र के हज़ारो नौजवान थे इसी वजह कर जेल में भी तक़रीर का दौर चलने लगा , धीरे धीरे वक़्त गुज़रता गया और आपकी सेहत में भी कुछ सुधार आया …


आख़िर आपके रिहा होने का दिन आ ही गया , जेल की गेट पर सैकड़ों की तादाद में अवाम सजी हुई मोटर और मालाओं के साथ आपका इस्तक़बाल करने के लिए खड़ी थी इसमें आपके कई दोस्त भी थे .. पूरा इलाक़ा नारा ए तकबीर :_ “अल्लाह ओ अकबर” की सदाओं से गूंज उठा


अगले दिन मुसलमान कलकत्ता की जानिब से “बंगाल मजलिसे अहररुल इस्लाम” के बैनर तले आपके इस्तक़बाल में एक अज़ीमुश्शान जलसा को अंजाम दिया गया जिसमे लोगो ने आपकी हौसला अफ़ज़ाई की , इन तमाम बातो की खबर आपके वालिद साहेब को लग चुकी थी , उन्होंने खत लिख कर आपको फ़ौरन ‘गया’ आने का हुक्म सुनाया, चूंकि आपकी कम्पनी बंद हो चुकी थी और सारा पैसा डूब चूका था इस लिए आपने भी सरे फर्नीचर बेच घर जाने को सोची और “गया” पहुंच गए .. लोगो ने आपका वह भी गर्मजोशी से इस्तक़बाल किया , आप वापस कलकत्ता जाना चाहते थे लेकिन घर वालो के दबाओ में आप हिल नही सके , आखिर में आपको ज़िम्मेदारी में बंधने के लिए 29 जून 1934 को आपकी शादी कर दी गई ,


" मेरी तमन्ना ये है के मादरे वतन की क़ुर्बान गाह पर मेरी जान क़ुर्बान हो जाए…

बिस्तर ए र्मग पर पाओँ रगड़ रगड़ कर मरने के बेजाए अल्लाह की राह मेँ मैदाने जंग मेँ या फाँसी के तख़्त पर जान दुँ… आमीन , सुम्मा आमीन- फ़क़्त "


(शाह वजीहउद्दीन ‘गर्म’ मिनहाजी 1-फरवरी-1936)


चूंकि बदन में दौड़ता सारा लहू ईमान वाला था – 

इसलीए “गर्म” कहाँ खामोश रहने वाला था ..!!


आपने अंग्रेज़ो के मुखालफत के लिए आपने क़लम का सहारा लिया और फिर से हाथ से लिखे हुवे पत्रिका का दौर शुरू हुआ…


आप क्रन्तिकारी पत्रिका लिखते थे जिसका नाम आपने “बाग़ी” रखा , जिसमे आप अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान लिखने के बाद अवाम से अंग्रेज़ो का मुख़ालफ़त करने के लिए दर्खास्त करते थे। इस पत्रिका मे उन्होने अंग्रेज़ों से किसी भी तरह का सम्बन्ध रखने से मना किया और गुजारिश करते थे की कोई भी हिंदुस्तानी अंग्रेजों के पास नौकरी ना करे। और इस पत्रिका को खुद गाँव गाँव जाकर बांटते थे।


इस पत्रिका को निकालने वाले का नाम तो अंग्रेज़ को आज तक नही पता चल सका पर उस पत्रिका के मौजू (विषय) और विवरण से अंग्रेज़ो ने ये अंदाजा लगा लिया की उसे “शाह वजीहउद्दीन मिनहाजी” जो बिहार मे “गर्म अज़ीमाबादी” के नाम से मशहूर थेे ही लिखते थे। इस वजह कर आपको कई बार शक की बुनयाद पर गिरफ्तार भी किया गया जिसका गवाह भागलपुर, गया कि जेलें हैं. पर कभी जुर्म साबित नही हो सका इस वजह कर आप हमेश जेल से बहार आ जाते थे .. आपको शेरो शायरी का भी बहुत शौक़ था , आपने बहुत सारी ग़ज़लें तो जेल की सलाख़ों के पीछे ही लिखा था.  


आपको जितना मुसलमान होने पर फ़ख़्र था उतना ही आपको मुसलमान के नाम पर सियासत करने वालो से नफ़रत भी था , आपने “मुस्लिम लीग” की खुल कर मुख़ालफ़त की ..


आपने जिन्ना की टू नेशन की थेओरी को बिलकुल ही ठुकरा दिया था जिसकी झालक आपको उनकी ग़ज़ल के इस मिसरे में दीखता है


"चाहा तो था के क़ाएदे आज़म को मान लुँ,

अल्लाह ने बचा लिया,ऐसा ना हो सका.."


आप एक महान क्रन्तिकारी , लेखक , कवि और समाज सेवी थे , पर फ़िलहाल के लिए इतनी ही जानकारी इकठ्ठा कर पाया हुँ इसलिए आपकी एक ग़ज़ल के साथ आपको खिराजे अक़ीदत पेश करता हुआ ये मज़मून फ़िलहाल खत्म करता हूँ , आपका इंतकाल 15 नवम्बर 1984 को हो गया था …

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(टीप - ये लेख शाह वजीहउद्दीन मिन्हाजी साहब की डायरी ‘मेरी तमन्ना’ पर अधारित है, अधिकतर जानकारी वहीं से ली गई है।)

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संदर्भ Heritagetimes

--- Md Umar Ashraf

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संकलन *अताउल्लाखा रफिक खा पठाण सर* 

सेवानिवृत्त शिक्षक

टूनकी बुलढाणा महाराष्ट्र*

9423338726

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