चुनाव आने पर मुस्लिम तथा दलितों को मौका मिलेगा... अब नही हैं इलेक्शन वर्ना मुस्लिम शहराध्यक्ष होता





चुनाव आने पर मुस्लिम तथा दलितों को मौका मिलेगा...
अब नही हैं इलेक्शन वर्ना मुस्लिम शहराध्यक्ष होता
लातूर(शेख मुस्तफा) :- 
जब मत मांगने की बारी आयी तो याद आते हैं मुसलमान तथा दलित समाज और जब पद भोगने की बारी आती है तो याद आते है स्वजात वाले.... 
लातूर जिला अल्पसंख्यांक घोषीत किया हुवा है इसमें मुसलमानों की संख्या ज्यादा है तथा इनके साथ-साथ दलित समाज की भी संख्या अधिक होने के कारण यह केंद्र सरकार द्वारा अल्पसंख्यांक घोषीत प्रदेश है जिसमें सें तकरीबन आमदार मराठा समाज से आते है तो रिजर्व्हेशन के वजह से खासदार दलीत समाज से आते हैं(रिझर्वेशन के पहले यहां पर खासदार भी लगभग मराठा तथा लिंगायत समाजसे ही थे). यहां पर मुसलमानों की आबादी अच्छी खासी है वो एक हो जाए तो एक मुस्लिम आमदार लातूर शहर से दे सकते हैं लेकिन यहां के मुसलमानों के आंखो पर स्थानीक नेता की पट्टी इस तरह बांधी हुई है की नेता ने अगर उनके साथ कुछ भी किया तो चलेगा? लेकिन हमारा हाथ तो हमेशा हाथ के साथ यांनी नेता के बटन पर ही जाकर रुकेगा. 
पिछले सप्ताह काँग्रेस के पदाधिकारीयों का चयन हुवा जिसमें श्रीशैल्य उटगे को जिल्हाध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई तो वहीं अल्पसंख्यांक समाज से तआल्लुक रखने वाले मोईज शेख को हटाकर उनके जगह पर शहर जिल्हाध्यक्ष पद पर किरण जाधव को बिठाया गया. 
हमे किसी भी समाज के खिलाफ यहां पर टिप्पणी नही करना है टिप्पणी करना है तो सिर्फ यहां के राजकारण पर जब मेहनत की बारी आती है स्थानीके नेता के फेवर में मत की आवश्यकता होती है तब उन्हें यहां का अल्पसंख्यांक तथा दलीत समाज याद आता है और जब पद भोगने की बारी आती है तो उन्हें मतदान के समय पर स्वपक्ष के विरुध्द काम करनेवाले तथा स्वजात के लोग याद आते है ऐसी सोंच अब यहां की जनता की हो रही है. औसा में लिगायत ओटींग का प्रमाण ज्यादा है  इसलिए पिछले 2 टर्म से बस्वराज पाटील चुनकर आ रहें थे जिन्हें वहां के लिंगायत नेतृत्व बराबर मदत भी कर रहा था लेकिन पिछले टर्म में लिंगायत समाज के नेता ने लिंगायत नेता के पिछे से हाथ हटा लिया था ऐसी भी चर्चा औसा शहर में जोरो पर चल रही थी इसलिए लिंगायत समाज को गिफ्ट के तौर पर जिल्हाध्यक्ष पद सौंपा गया गया और शहर जिल्हाध्यक्ष पद पर किरण जाधव सिर्फ और सिर्फ मराठा समाज से तअल्लुक रखते हैं और भैय्या के विश्‍वासु हैं इसलिए उन्हे इसकी कमान सौंपी गयी ऐसी चर्चांए भी अब लातूर शहर में उफान पर है. लेकिन जब मतदान  का समय आता है तब 4 से 6 महिने के लिए मुस्लिमों तथा दलीतों के चेहरे आगे कर दिये जाते और उन्हें इतना निचोंडा जाता है की बाद में वो लोग किसी काम के नहीं होते ऐसे ही 6 माह तथा 1 साल के पद भोगने वाले आज कुछ काँग्रेस को छोड चुके हैं तो कुछ राजकारण से हद्दपार हो चुके हैं जिनके नाम यहां पर लेना गंवारा नहीं होगा उस नेतृत्व में इतनी धमक थी की वो इस समाज का विकास कर सकते थे लेकिन फिर भी उन्हें 4 से 6 महिने के लिए पदाधिकारी बनाकर उन्हें इतना निचोडा गया की वो आज सत्ता तथा सत्ताकेंद्र से बाहर ही हो गए?
सत्ता में भागीदार न होने के कारण मुसलमान तथा दलीत समाज पर जो अन्याय हो रहा है उसके लिए मानों हम ही जिम्मेदार होते हैं हम यह राजकारणीयों के व्यवहार का सही तौर पर अकलन नहीं कर पाते 4 से 6 महिने पदाधिकारी के मुंह देखकर हमें लगता है की हमारे पूरे समाज को न्याय मिला और उसके कहने पर आंख मुंदकर मतदान करके उन्हें जिताते. लोकशाही में दो ही पक्ष होते हैं एक होता है सेक्युलर दूसरा होता है जातीयवादी अब हमें तिसरे पक्ष के बारे में भी सोंचना होगा और तीसरे पक्षद्वारा ही हमें सत्ता में बैठना होगा. आज हम नपा में,जिप में होतें तो आज गोलाई में हो रहे पार्कींग के नाम मुस्लिम मुक्त गोलाई  का अभियान चलाया जाता? कभी भी इस अभियान को नहीं चलाया जाता कोरोना के वजह से तथा असमय गलत लॉकडाऊन के वजह से भी यहां के मुस्लिम तथा दलीत समाज का काफी नुकसान हुवा है क्योंकी यह वहीं समाज है जो छोटा मोटा रोजगार कर अपनी रोजी रोटी चलाता है मगर प्रशासन में पकड न होने के कारण आज यही समाज टार्गेट हो रहा है गोलाई में हाथगाडे वाला नहीं आ सकता, श्याम 5 के बाद कोई छोटी दुकान चालु नहीं रह सकती दुकान बंद करने में थोडी देर भी हो गई के फोटो निकालकर उन्हें दंडित किया जाता है तथा बार, देशी दारु की दुकानों में देर रात तक पार्सल मिल रहा है उसवोर यह स्थानीक प्रशासन आंख मुंदकर खामोश दिखाई देता है ? प्रशासन हरकत में तब आता है जब उनके सामने गरीब ठेलेवाला मुस्लिम,दलीत समाज का व्यक्ती दिखाई देता है इसलिए अब हमें हमारे नेताओं के हाथ मजबूत करने होंगे अब यही एक रास्ता बचता है.
चुनाव आने पर मुस्लिम तथा दलितों को मौका मिलेगा...
अब नही हैं इलेक्शन वर्ना मुस्लिम शहराध्यक्ष होता

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