खुद्दारी को अपनी बचाने के
वास्ते ,
बच्चों को अपने भुका सुलाना
पड़ा मुझे ,
ठोकर न खाये और कोई बस
इसलिए पत्थर को रास्ते से
हटाना पड़ा मुझे ,
खामोशियों को वो मेरी
बुजदीली न समझे ,
मैदान में ये सोंचके आना
पड़ा मुझे ✍️
मुख़्तार कुरेशी, औसा
खुद्दारी को अपनी बचाने के
वास्ते ,
बच्चों को अपने भुका सुलाना
पड़ा मुझे ,
ठोकर न खाये और कोई बस
इसलिए पत्थर को रास्ते से
हटाना पड़ा मुझे ,
खामोशियों को वो मेरी
बुजदीली न समझे ,
मैदान में ये सोंचके आना
पड़ा मुझे ✍️
मुख़्तार कुरेशी, औसा
सद्भावनेने राहु या ! (कवी: बशीर शेख "कलमवाला") डोळे भरून पाहावे, मनामध्ये घर करावे, प्रे…
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