मरहूम वकील काज़ी साहब , हसमुख और दिलदार व्यक्तमत्व...

 मरहूम वकील काज़ी साहब , हसमुख और दिलदार व्यक्तमत्व...

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 यौमे वफ़ात

व्यक्ति विशेष -- म. मुस्लिम कबीर

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      समाज और परिसर में कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन के प्रति सामान्य जनों में एक प्रकार की आस्था,प्रेम का भाव होता है.इन व्यक्तियों को भुलाना असंभव  होता है.क्यूंकि इन की यादें मन और मस्तिष्क में घर कर बैठी होती हैं. प्रसंगवश उन के कार्य , पद्धती और भाषा शैली पर सामान्य बैठकों में चर्चा का विषय बन कर उनके प्रति आस्था का माहौल पैदा होता है. ऐसे ही व्यक्तियों में हमारे शहर के जाने माने व्यक्ति,मिर मुस्तफा अली काज़ी जो वकील काज़ी साहब के नाम से सर्व परिचित थे, उनसे जुड़ी यादों पर प्रकाश डालने की कोशिश कर रहा हूं.

       मरहूम मीर मुस्तफा अली काज़ी उर्फ वकील काज़ी साहब औसा शहर के मुख्य काज़ी गुलाम गरीब नवाज़ मीर हयात अली काज़ी के सुपुत्र और तत्कालीन चीफ काज़ी मीर मुज्तबा अली काज़ी उर्फ मियां काज़ी साहब और मीर हशमत अली काज़ी के भाई थे.प्रसिद्ध काज़ी घराने के चश्म चिराग थे.जब 1974 में औसा शहर में पहले उर्दू स्कूल  हज़रत सूरत शाह उर्दू प्रा. स्कूल की नीव डाली गई तब से शिक्षक व 1978 से 2003 तक मुख्याध्यापक के रूप में सेवारत रहे.अपने  सबंध सेवा काल में पलकों, अधिकारियों और अपने मातहत शिक्षक कर्मियों से बेहतर संबंध रहे.

     मरहूम वकील काज़ी साहब से मेरा संबंध वैसे मेरे बचपन से रहा जो मेरे फूपीजाद भाई तथा जिला परिषद हाईस्कूल के पूर्व प्रधानाध्यापक(वर्ग2) अल्लाह बख्श अलुरे के जिगरी दोस्त थे. उनके घर हमेशा उन का आना जाना था.उस समय से हमारा उन का संबंध था.वो मेरे शिक्षक भी थे.इस के बाद 1985 से 2003 तक हज़रत सूरत शाह उर्दू स्कूल औसा में मुझे उनके मार्गदर्शन और उनके सहयोगी शिक्षक होने का  अवसर मिला.18 वर्ष के दीर्घ सेवा काल में मैंने अनुभव किया कि एक स्कूल के मुख्याध्यापक के रूप में उन्होंने जो अपने सहयोगियों से रिश्ता बनाया था शायद ही आज कोई ऐसा अधिकारी इस रूप में नजर आता है.अधिकार वाणी के बजाय प्रेमवाणी से कार्य करवा लेने की मरहूम वकील काज़ी साहब की शैली उनके बड़प्पन और अखलाक की निशानी है.अपने मातहतों के साथ कैसा रावय्या होना चाहिए? ये उनके रवय्ये से ही जान सकता था.सच है इंसान उस के शालीनता से ही पहेचान पाता है.

    अपने सहयोगी शिक्षक कर्मियों के सुख दुःख में इस प्रकार शामिल होते जैसे कोई परिवार का घनिष्ठ सदस्य ही हों. यही नहीं बल्कि  उन के पैतृक मोहल्ले के अधिकतर परिवारों के लिए वो अपने घर का ही भाई और बेटा बन कर उन के कार्य को बिना संकोच किए करते देखा.कई बूढ़े मर्द और औरतों, बेवाओं और यातिमो को आर्थिक सहायता करते देखा है. मरहूम वकील काज़ी साहब के रिश्तेदारी,और दोस्ती का दायरा बहुत विशाल था.करीबी हों या दूर के सभी रिश्तेदार उनके यहां मेहमान बने रहते,हमेशा उन के यहां मेहमानों  की रेल चेल रहती.वो बड़े मेहमान नवाज़ थे.बल्कि काज़ी मोहल्ले की मस्जिद में आने वाले मुसाफिरों की खिदमत को भी प्राथमिकता देते.

    मरहूम वकील काज़ी साहब, हमेशा हसमुख और खुले मन के आदमी थे.शहर औसा की वजादार हस्ती थी.फर की टोपी, मुस्कुराते हुए बात करने का लहजा उनके व्यक्तित्व की विशेषता रही.ज़माने के बदलते रिवाजों को, स्वार्थ और को अपने अंदर पनपने नहीं दिया बल्कि शालीनता और सभ्यता से लोगों के मन को जीत सकते हैं इस बात पर उन का विश्वास था. तभी तो वो समाज के हर स्तर में उन की छबि बनी रही.उनका मित्र परिवार जात धर्म से परे था.

      मरहूम वकील काज़ी साहब के पारिवारिक जीवन भी देखने का अवसर मिला.जब तक वो जीवित रहे मेरे उन के पारिवारिक संबंध भी रहे हैं.वो अपने माताजी (अम्मा) की सेवा को प्राथमिकता देते.इस सेवा में उन के परिवार के सभी सदस्य साथ देते. अम्मा भी बड़ी शालीन व खुश मिज़ाज थीं.हम घंटो तक उन की बातों को सुनते वो औसा के अधिकतर परिवारों को बेहतर जानती थीं.बड़ी मुहब्बत से बात करती थीं.(अल्लाह इनकी मगफिरत फरमाए और दरजात बुलंद फरमाए )

2 शवाल  सन  27/11/2003  मे वफ़ात हुई 

      अल्लाह पाक से दुआ है कि मरहूम वकील काज़ी साहब की मगफिरत फरमाए और दरजात बुलंद फरमाए... आमीन

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