समज जा बेटी उने पिच्चे पडयाच कैसा ? तु देखी नै सो उने देख्याच कैसा ? ताली एक हाथ शी बजतीच नै तू ये गलती करीच कैसा ?

 समज जा बेटी



उने पिच्चे पडयाच कैसा ? तु देखी नै सो उने देख्याच कैसा ? ताली एक हाथ शी बजतीच नै तू ये गलती करीच कैसा ?


तू हशी कर को उने हश्या होंगा तेरे हशने कूच तेरा जवाब समझ्या हूंगा. तू चिट्टी का जवाब दी हूंगी कर को उन्हे बहौतीच चिट्टीयां लिख्या हंगा


पराए अदमी देखनाच नई अम्मां बोली सो तू सूनीं नईं .. र


नजरां के तीर खा को दिल को रोग लगा कू मां बाप का क्या नाम रोशन कर ईं? पढने के आगे बढने रस्ते खूदीच .. बंद कर ले रई...


अक्कलशी काम ले बेटी पढ़ने कू तुझे भेजीं पढ को नाम कर बेटी.


थोडा समज री बेटी.. इल्म हुनर शिक ले .. वक्त अभीच है सो कर ले... वक्त एक बार गया तो फिर आता नई देक बेटी.. तु कर वक्त की कदर


वक्त भी करींगा तेरी एक दिन कदर तू अगर नई समझी ये बातां तो जिंदगी भर सुनींगी हरेक के बांतां


अय्यूब तुझे समझा रै समझ जा बेटी फिर बाद मे पचताने शी क्या होगा फायदा?


अय्यूब नल्लामंदू सोलापूर



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Hum ko un se wafa ki hai ummid

Jo nahi jante wafa kya hai

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*21 मार्च* 

का यह दिन कविता के रूप में मानव सभ्यता के भीतर मौजूद भाषाओं की विविधता का उत्सव माना जाता है



#WorldPoetryDay


इस मौके पर एक दखनी कविता

पेश खिदमत है ▪️▪️▪️▪️

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