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📙KASID WEEKLY ,SOLAPUR 📙
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इशाअत का 49 वॉं साल*
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मेरी मेहनत तन्हा नही
मेरी मेहनत मे सभी का हिस्सा है
अजीज दोस्तो , साथीयों, अस्सलामु अलैकुम....
आप सब की दुआओं से, ब-फजले तआला मरहूम वालीद मोहतरम के हाथों "कासिद' नामी दीन का एक छोटासा पौदा आज से 48 साल पहले लगाया गया था. ये दीनी अखबार आज 49 वे साल मे कदम रखा है, इसका हमें फख्र है. एक रूहानी खुशी है. दीन का काम करने और कौम व मिल्लत तक सही मालूमात पहुंचाने के काम मे कई जमातें लगी हैं और अलहमदू लिल्लाह रहबरी के लिए उल्माओं की बड़ी तेदाद मौजूद है, दीनी अखबारात, वेबसाईट, इस्लामीक सेंटर, चॅनेल्स का बोलबाला है. ये जजबा हर मुसलमान मे पाया जा रहा है लेकिन आज से साल पहले का वह वक्त था जब ना तो कोई दीनी अखबार छपते थे और ना दीनी मालूमात हासील करने क्रे कोई दूसरे जराए थे खास कर के तालूके और देहातों मे रहने वाले जो उर्दू सेना - वाकिफ थे तो कुछ लोग मराठी पढते थे ऐसे देहाती मुसलमान भाई-बहनें दीन से बहूत दूर थे उन मे ना तो दीन की समझ थी और ना हमारे अकायद, फरायज़ और सुन्नतों की मालूमात....बिद्दत और गैर शरई रसुमात पूरी तरह से इन पर हावी थे. ... ऐसे दौर मे वक्त की जरूरत को समझते हुवे मरहुम हाजी अब्दूल लतीफ साहब शहर ही नही बल्के भारत की वो मिसाली शखसीयत थी जिन्होंने सन 1975 मे पहले हिंदी यांनी देवनागरी लिपी मे "नजात" अखबार शुरु किया फिर कुछ ना - साज़गार हालात हुवे तो ''नजात'' से अलग हो कर 1976 मे "कासिद' इस दीनी समाजी, तालीमी अखबार की बुनियाद ही नही रखी बल्के उसे अपनी आखरी सांस तक यांनी 47 साल तक जारी रखा, और छोटे छोटे कसबो , और हर जिले के देहातों मे कासिद के जरीए दीनी तबलीग की शुरुआत की जिसे काफी सराहा गया , बहोत पसंद किया जाने लगा , हाथों हाथ लिया जाने लगा... और ये सिलसिला आज भी जारी है. ब-फज़ले तआला इन्शा अल्लाह आगे भी जारी रहेगा.
अल्लाह तेरा बडा एहसान है।
सारी दुनियां को रौशन करनेवाले मेरे अल्लाह... तेरा बडा फजल व करम हम पर है के हम ने कासिद के 48 साल पुरे कर के 49 वें साल मे कदम रखा है. मेरे मौला यह सब कुछ हुवा तेरी मदद शामील थी वरना हम क्या कर पाते? हर वक्त हर कदम पर तेरी रहमतें, तेरी बरकतें शामील रही, इसी लिए हम ने मुश्कील से मुश्कील हालात का सामना करते हुवे भी कभी नहीं घबराए. हर मुश्किल मे बस तेरी करम की भीक मांगते और तु ने हमें कभी मायुम नहीं किया. वालीद मोहतरम मरहूम हाजी अब्दूल लतीफ नल्लामंदू साहब ने जिस मकसद के लिए कासिद की बुनियाद डाली थी ब-फजले तआला आज भी उसी मकसद के तहत हम काम कर रहे है और मैं मेरे भाई अ. कुद्दूस, अबुबकर हमारी हयाती तक इन्शाअल्लाह इस दीनी काम को अंजाम देते रहेंगे. आप लोगों का भी ताअवून हमेशा हमारे साथ था और इन्शाअल्लाह आगे भी रहेगा यही अल्लाह की जात से उम्मीद करते हैं.
कासिद के पढनेवाले इस बात को ब-खुबी जानते हैं के "कासिद' यह सियासी अखबार नही है जिस से इसे कोई सियासी तौर पर या किसी और तरीके से मदद मिलती. यह दीनी अखबार है इसे गिने-चुने दीनी मुहब्बत रखनेवाले लोग ही चाहते हैं. पसंद करते हैं, और अपने तौर पर खरीदार बनाने मे मदद करते हैं. हम कासिद के तमाम पढनेवालों से फिर से गुजारीष करते हैं के वो कासिद को अपने करीबी रिश्तेदारों तक पहुंचा कर इस नेक काम मे हमारी मदद करें ताके के यह अखबार जिंदा रहे और दीन की रौशनी हमेशा चमकते रहे, फैलते रहे हमारी इस दीनी तडप को आप बेहतर जानते हैं. समझते हैं, इस लिए हम आप से इस अखबार को कायम रखने के लिए बात करते हैं. आज का दौर इश्तेहार, जाहिरात का दौर है हर तरफ यही माहौल है हम अपने ताजीर पेशा, बिझनेसमंद हजरात से यह गुजारीष करते हैं के वो अपनी एक जाहिरात कासिद मे जरुर दें. ताके अखबार चलाने मे, उसे जिंदा रखने मे मदद हो हमें उम्मीद है कासिद के चाहने वाले जरुर जरुर हमारी इस दावत पर लब्बैक कहते हुवे हमें इश्तेहार जरुर देंगे. कासिद के शुरु से आज तक हमें कई लोगों ने सहारा, साथ दिया इस लिए हम उन के लिए अल्लाह के दरबार मे दुआ करते हैं के अल्लाह उन की हर मुराद को पुरी करे, कारोबार मे तरक्की अता करे, घरों मे खुशहाली अता करे और दीन पर कायम रखे. (आमीन)
आप सभी इस बात को बेहतर जानते हैं के इस दुनियां मे कई ऐसे लोग है जो सिर्फ चाय-पान, गुटखा-मावा, बीडी-सिगारेट मे रोजाना कम से कम सौ, दो सौ रुपये खर्च करते हैं. मगर यही रोजाना खर्च होनेवाले सौ - दो सौ रुपयों से अपने बच्चों को दीनी किताबें खरीद कर दें उन्हे अखबार पढने की आदत डालें. हम यह नहीं कहेंगे के उन्हे कासिद पढाएं मगर हम यह जरुर कहेंगे के अखबार दीनी हो या दुनियावी, जरुर पढने की आदत डालें. या यही फुजुल कामों पर होनेवाले खर्च को रोक कर मोहल्ले के गरीब बच्चों पर खर्च करें उन गरीब बच्चों की तालीम पर खर्च करें आज भी हमारे हर मोहल्ले मे ऐसे कई बच्चे नजर आते हैं जिन्हों ने अपनी हैसियत नही रहने की वजह से तालीम छोड दी है, कई जवान लडकीयॉं उम्र होने के बावजूद घर बैठी हैं, शादी नहीं हो पा रही है. इन पैसों से इन लडकीयों की मदद करते हुवे अल्लाह की खुशनुदी हासील किजीये. क्यों के अल्लाह तआला हमें पैसे देकर भी आजमाता है और नहीं दे कर भी आजमाता है. हमें समझना चाहीये के हम अपने पैसे किफायतशारी के साथ इस्तेमाल करते हुवे हमेशा दुसरों की मदद करना चाहीये इससे अल्लाह बडा खुश होता है और हमारी तरक्की के और भी रास्ते अल्लाह खोल देता है.
नमाज पढने से अल्लाह की खुशनुदी तो जरुर हासील होगी मगर अल्लाह उस से भी बढ कर तब खुश होता है जब बंदा अपना माल दुसरों के लिए अच्छे कामों मे खर्च करता है. अल्लाह तआला हम सब को अमल करने की नेक तौफीक अता करे और हर एक के सुख-दुःख मे शरीक रह कर अपने हैसियत के मुताबीक मदद करने की नेक तौफीक अता करे अपनी औलाद पर दीनी कामों के अलावा आला तालीम हासील करने के लिए पैसा खर्च करने की नेक तौफीक अता करे अल्लाह हमारे हर छोटे-बडे अमल को कुबुल करे (आमीन)!
एक गुजारीष "कासिद' पढने वालों से..... रब्बना अगफिरली वल वालीदयीय वल- मोमीनी न यौम यौकू मूल हिसाब (सुर-ए-इब्राहीम-41)
ऐ हमारे रब ! मुझे और मेरे वालीदैन और सब इमानवालों को उस दिन बख्श देना जब हिसाब कायम होगा मैं कासिद के पढने वालों से अदबन गुजारीष करता हूँ कि कासिद के फौंडर एडिटर, मेरे वालीद मोहतरम मरहूम अब्दूल लतीफ साहब के हक में जरूर जरूर. जरुर दुआ करते रहें और कासिद को जारी रखने मे "इश्तेहार - जाहिरात' दे कर हमारी मदद करे, आपकी दुआओं का तलबगार.
*- अय्यूब अ लतीफ नल्लामंदू
एडिटर कासिद , सोलापूर*
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