यादे मुस्तफा (सल्ल.) दिल को तडफाती है..
राहे हक़ में कामियाबी के लिए खींच लेती है...
नेकी को बढावा देती तो बदी से रोकती है
रहेमत बनकर ज़िंदगी को संवारती है...
कुरआन समझकर पढने को आमादा करती है..।
यादे मुस्तफा (सल्ल.) दिल को तडफाती है..
हुकूक़ जि़ंदगी के बाराह याद दिलाती है...
इन्सानियत के खिदमत के लिए उभारती है...
सब्र, हिकमत, अदबो एहतराम सीखाती है
हय्या लस्सलाह हय्या ललफलाह की ओर बुलाती है
यादे मुस्तफा (सल्ल.) दिल को तडफाती है..
अमली ज़िंदगी जीने को बाराह उभारती है
खुशगवार मुआशरे की फिक्र दिलाती है...
सबको आदम और हव्वा अलै.की नस्ल कहलाती है...
ख़ुदा की दावत सबतक पहूंचाने की फिक्र दिलाती है
यादे मुस्तफा (सल्ल.) दिल को तडफाती है...
मां-बाप की खिदमत का अज्र बतलाती है...
जन्नत में जाने का रास्ता बतलाती रहती है
मुकम्मल जिंदगी जीने का तरीका बताती है...
पैगम्बरों की आने की वजह बतलाती है...
यादे मुस्तफा (सल्ल.) दिल को तडफाती है..
तालीम, तरबियत, तिजारत को बढावा देती है...
इकामते दीन के फवायद बताती रहती है...
खिदमते खल्क करने को आमादा करती है...
ईमान, नमाज़, रोज़ा, जकात, हज फर्ज कहती है
यादे मुस्तफा (सल्ल.) दिल को तडफाती है..
गुरबा, मिस्कीन, मजलूम की मदद को उभारती है...
रब के नियामतों व बरकतों.को गिनाती रहती है..।
बेटीयों के परवरीश का खयाल दिलाती रहती है...
दुनिया व आखिरत की कामियाबी की कुंजी बताती है
इस्लाम को मुकम्मल दीन कहलाती है...
दोनों जहां की कामियाबी का बायस बताती है...
उम्मत की फिक्र हर पल दिलाती रहती है...
खुदा के ज़िक्र को लब पे रखने को कहती है..
यादे मुस्तफा (सल्ल.) दिल को तडफाती है.
यादे मुस्तफा (सल्ल.) दिल को तडफाती है..
यादे मुस्तफा (सल्ल.) दिल को तडफाती है..
@बशीर शेख "कलमवाला"
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