चौक मे,बाजार मे,दिखते बेनूर लोग.....
माल के चक्कर में आमाल से दूर लोग.....
मौत बरहक है जानते तो सब हैं.
दुनिया के नशे मे हरदम चूर लोग,
फितन् ए दज्जाल का दौर करीब है,...
उम्मत मे नबी के फिकरें अजीब है...
मफात (मतलब)बसता है अब दिलो मे अक्सर....
हक है के कयामत अब हद से करीब है....
ईद के दिन नशे मे मुसलमान हैं देखा...
रमजान मे गानो मे डूबा खानदान है देखा.....
अल्लाह के घर को मैनै विरान है देखा.....
पैसो के टुकडो से डगमगाता इमान है देखा,,,
राह हक है ये काटो से भरी है,
जिल्लत है दुनिया ये नजर से गिरी है...
बडे गंदे मनाजिर हैं अंदर से इसके...
नजर मे दिखती ये हरी है भरी है...
ताल्लूख जो जोडे है,बंदो का खूदा से,,,
सच्घा है,सादीक है,हमेशा.. सदासे,,
गुजरती शबौ मे हो दुवा और आंसू,,
कहां लम्हे फुरसत और उम्मीद जहां से....
गफलत की दुनिया से बेदार हो जा....
खूदा का नबी का वफादार हो जा...
करे तू भला दुनिया बुरा ही कहेगी.....
सच्चा यूं उम्मत का किरदार हो जा...
............अख्तर,,,,,8/6/25
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